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________________ स www wwwww ―― मन-वचन-काय की सरलता ही विशुद्धता है । fe व्यक्ति (निर्लोभ व्यक्ति ) अलंघ्य होता है । मनुष्यलोक में सुख वही है जो चिस को सन्तुष्ट करनेवाला हो । अमृतपान से जो संतोष होता है, अन्यत्र है। • कृत्रिम वस्तुएं अवश्य ही नश्वर होती है । इस संसार में सब वस्तुएं विनश्वर हैं । गुणी गुणों से एकीभूत होता है अतः गुणी का नाम होने पर गुणों का भी नाश हो जाता है। हाथ से बडवानल में गया हुआ रत्न फिर नहीं मिल सकता | वस्तु का स्वभाव विनाशशील है । — मधुर भाषण सत्पुरुषों की कुलविया है । दूसरे प्राणियों को पीड़ा देनेवाला वचन प्रयत्नपूवक वर्जनीय है। वचन की प्रामाणिकता वक्ता की प्रामाणिकता से होती है । पहले बिना विचारे कथन का फल बाद में वित्र के समान होता है । असत्य से पाप कर्म का बंध होता ही है । सज्जनों के वचन रोगी मनुष्य को प्रौषधि के समान परिणाम में हितकारी होते हैं । मौन से सब मनोरथ सिद्ध होते हैं । प्रतिदुर्लभ वस्तु यदि हाथ के निकट हो तो उसकी प्राप्ति में विलम्ब करना ठीक नहीं । ६६ 88
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
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