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________________ .............. SCIE अभिषिंच्यार्जनं कृत्वा कुर्या जप सहस्रकं ॥ १७ ॥ , हीन आचरण से युक्त राजा, तीन दिन अभिषेक व अर्चना करें। वह प्रमाण से छीटे देता हुआ, एक हजार जाप करें ॥ १७ ॥ तीन दिन पर्यंत यदि दैनिक धर्माचरण की हानि हो जाय तो उपर्युक्त प्रमाण कलशों से अभिषेक कर श्री प्रभु की अर्चना पूजा करके एक हजार महामंत्र का जाप करें | अर्थात् दशमाला जप से प्रायश्चित्त समझना चाहिए ॥ १७ ॥ संति होमं च पुण्णाहं किच्चेगं सयं तवो । अरह गुण थोवं च काउस्सम्म दिसिक्कम्मा ॥ १८ ॥ शांति होमं च पुण्याहं कृत्वेकान् शतं तपः । अर्हद् गुण स्मृतिं कुर्यात्, कायोत्सर्गं दिशि क्रमात् ॥ १८ ॥ अरहंत गुणों की स्मृति कर, क्रम से दिशा में कायोत्सर्ग करें। पुण्य के लिए शांति होम कर, सौ बार तप करें ॥ १८ ॥ उपर्युक्त क्रिया करने के बाद शांति विधि और होम करे, तथा एक कम सौ अर्थात् ९९ निन्यानवे बार महामंत्र का जाप करना तप है पुनः श्री अरहंत देव के गुणों का स्मरण करते हुए क्रमशः दशों दिशाओं में कायोत्सर्ग भी करें ॥ १८ ॥ चउठवग्ग घडक्खेवे, सुत्ताणिं चउद्दसं । उसे कलसम्मज्झे दुवालसं विदंसेइ ॥ १९ ॥ चतुर्वर्गघट न्यासे, सूत्राणि स्युश्चतुर्दश । चत्वारः कलशामध्ये, द्वादशको विदिश्यपि ॥ १९ ॥ सूत्र से युक्त चार वर्ग में, १४ घट स्थापित करें। चार कलशों को मध्य में, बारह को विदिशा में स्थापित करें ॥ १९ ॥ यदि चार दिन आचार क्रम विधान न हो सका तो उसकी शुद्धि प्रायश्चित्त इस प्रकार करें। प्रथम दिनापेक्षा चार गुणे कुंभ (कलश) स्थापित करें, सम्यक प्रकार चारों सूत्र से वेष्टित करें। कलश चारों दिशाओं में स्थापित कर मध्य में प्रायश्चित विधान - ८२
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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