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________________ xxxru mxxxxxxr पंचमंडल रचकर मध्य में श्री जिनबिंब विराजमान करें। पुनः तीन सौ सुगंधित ताजे प्रफुल्ल कुसुमों-पुष्पों से आप करें । अर्थात् णमोकार महामंत्र का पुष्प चढ़ाते हुए तीन सौ बार णमोकार महामंत्र का जाप करना चाहिए ॥ १४ ॥ तथा जव-पूय च विज्जं च काउस्सग्ग-तियण्णियं । दिण दुव-सुकिज्जेज दुव-संज्झतवच्चरे ॥१५॥ जप पूजां विधामेवं, कायोत्सर्ग त्रयान्वितं । दिन वियं सकृत भुंज्या, द्विक संध्या तपश्चरेत् ॥ १५ ॥ भि से चार पूजाका, मामी सेलायोत्सर्ग करें। दोनों संध्याओं में, अच्छी तरह से तपस्या करें॥ १५ ॥ उपुर्यक्त विधि से पुष्प पूजा करके तीन कायोत्सर्ग करें। साथ ही यह क्रिया दो दिन पर्यंत करते हुए एक भुक्ति रूप तप करना चाहिए। अर्थात् दो दिवस हानि पर दुगुना करें ।। १५ ।। तथा तिवग्ग कलसंणिक्खे सुत्तं अङ्कणिवाइए। अझ पुव्व मुहं कुज्जा, अद्धमुतर दिग्मुहं ॥ १६ ॥ त्रिवर्गाकलशा न्यासे, सूत्राण्यष्टौनिपातयेत् । अर्द्ध पूर्वमुखं कुर्याद, मुत्तर दिग्मुखं ॥१६॥ कलश को सूत्रों से बांधकर, तीन वर्ग में रखें। आधे का मुख पूर्व में, आधे उत्तर दिशा में रखे ॥ १६ ॥ तीन गुणित कलशा स्थापित आठ बार सूत्र से वेष्टित कर आधे कलशों को पूर्व की ओर अर्द्ध कलशों को उत्तर की ओर स्थापित करें। इस प्रकार रचना कर श्री जिनेन्द्र भगवान को अभिषिक्त करना चाहिए॥१६॥ तिदिवायार-दाणुतं, रायप्पमिइ हीणं । अहिसिंच्चेज्ज णिच्वं च कुज्जे जव सहस्सगं ॥ १७ ॥ त्रिदिवाचार दानोक्तु, राजा प्रमिते हीनेः। प्रायश्चित्त विधान - ८१ VisimaaN
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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