SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ samitin i n diaidiodaboot0000000randedascadelsladewaseemappio-बालापन ग्राहणयोः प्रासुकस्यापि प्रत्याख्यातस्य विस्मरणात् प्रतिग्रहे च स्मृत्वा पुनस्तदुत्सर्जनं प्रायश्चित्तं । अर्थात् शक्ति को न छिपाकर प्रयत्न से परिहार करते हुए भी किसी कारण वश अप्रासुक के स्वयं ग्रहण करने या ग्रहण कराने में, छोड़े हुए प्रासुक का विस्मरण हो जाय और ग्रहण करने पर उसका स्मरण आ जाय तो उसका पुनः उत्सर्ग करना ही विवेक प्रायश्चित्त है। मोनादिना लोचकरणे, उदरकृमिनिर्गमे, हिमयशकादि महावातादि संधी तिचार, मध हारततृणध कोपरिगमने, जानुमात्रजलप्रवेश करणे, अन्य निमित्त वस्तु स्वोपयोगे करणे, नावादि नदी तरणे, पुस्तक प्रतिमापातेन, पंचस्थावर विधाते, अष्टदेशतनुमल विसर्मादौ, पक्षादप्रतिक्रमण क्रियायां, अंतयाख्यान प्रवृत्त्यंतादिषु, कायोत्सर्ग एव प्रायश्वित्वं । उच्चार प्रसवणोदो च कायोत्सर्गः प्रसिद्ध एव । अर्थात् मौन आदि धारण किये बिना ही लोंच करने पर, उदर में से कृमि निकालने पर, हिम, दंशमशक यद्वा महावातादि के संघर्ष से अतिचार लगने पर, स्निग्ध भूमि, हरित तृण, यद्वा कर्दम आदि के ऊपर चलने पर, घोटुओं तक जल में प्रवेश कर आने पर, अन्य निमित्तक वस्तु को उपयोग में ले आने पर, नाव के द्वारा नदी पार होने पर, पुस्तक या प्रतिमा आदि के गिरा देने पर, पंच स्थावरों का विघात करने पर, बिना देखे स्थान पर शारीरिक मल छोड़ने पर, पक्ष से लेकर प्रतिक्रमण पर्यंत व्याख्यान प्रवृत्त्यन्तादिकों में केवल कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त होता है। और थूकने और पेशाब आदि के करने पर कायोत्सर्ग करना प्रसिद्ध ही है। एवं तवो पायच्छित्तं कस्स होदि । तिबिंदियस्स जोव्वणभरथस्स बलवंतस्स सत्त सहायस्स कथावराहस्स होदि । अर्थात् जिसकी इंद्रिया तीव्र हैं, जो जवान हैं, बलवान हैं और सशक्त हैं, ऐसे अपराधी साधु को तप प्रायश्चित्त दिया जाता है । छेदोणाम पायच्छित्तं । एवं कस्स होदि। उपवासादि खमस्स ओष क्लस्स ओष सूरस्स गणियस्स कयावरा हस्स साहुस्स होदि । अर्थात जिसने बार-बार अपराध किया है। जो उपवास आदि करने में समर्थ है, सब प्रकार से बलवान हैं, सब प्रकार से शूर और अभिमानी है MATIOneminineDRIAAILE प्रायश्चित्त विधान - ६७
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy