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________________ जिस प्रकार प्रासाद की नींव Foundesion मजबूत है तो महल भी निरापद टिकाऊ होगा, कितनी ही मंजिलें बना लो तथाऽपि स्थाई रह सकेगा, इसी प्रकार श्रावक धर्म निष्ठ श्रावक-श्रावकाएं ही दिगम्बर दीक्षा धारण करने में सक्षम हो सकते हैं । यति धर्म का श्रीगणेश श्रावकाचार निष्णात ही कर सकता है। कहा भी है “जे कम्मेशूराः ते धम्मे शूराः।" प्रायश्चित्त जीवन सुधार की प्रणाली है। जीवन प्रवाह है, इसकी धारा अनेकों रूपों में प्रवाहित होती है। समयानुकल इसमें प्रमाद कषायवश दोषोत्पादन होना स्वाभाविक है । जिस प्रकार नदी नालों में प्रवाहित नीर में अनेकों कूड़ाकचरा, मिट्टी आदि का मिश्रण हो जाता है तो फिल्टर आदि यंत्रों से उसे निकालकर जल को स्वच्छ-निर्मल कर लिया जाता है, उसी प्रकार तत्त्वज्ञानी, आत्मार्थी व्यक्ति भी अज्ञान, मोह, मिथ्यात्व, प्रमाद, कषायादि वश धर्माचरण, सदाचार, शीलाचारादि में उत्पन्न दोषों का निराकरण करने को प्रायश्चित्त रूपी फिल्टर का प्रयोग करते हैं। इसके मन भायादि परन गुरु होते हैं । अतः निन्दा, गर्दा, आलोचनादिगुरुदेव की साक्षी में कर मुमुक्षु आत्मा को जीवन को सुसंस्कृत कर निर्दोष बना लेता है। निर्मल आत्मा ही मोक्ष पथारूढ़ हो परमात्म पद पाने में समर्थ होता है। जिस प्रकार रोगी औषधि के साथ पथ्य भी सेवन करता है, तभी आरोग्य पाता है। उसी प्रकार साधक भी स्व कर्तव्यनिष्ठ हो, तप, त्याग, संयम, शील व्रतादि का अनुष्ठान रूपी औषधि सेवन के साथ प्रायश्चित्त रूपी पथ्य का भी विधिवत् यथोक्त-आगमानुसार आचरण करता है तभी संसार रोग-जन्म-जरा. मरण-व्याधि से छुटकारा पा स्वास्थ्य लाभ पाता है। अतः यह ग्रन्थ प्रत्येक भव्यात्मा को पठनीय, चिन्तनीय, आचरणीय है। अवश्य पाठक लाभान्वित होंगे, इसी आशा से हिन्दी अनुवाद किया है गुरुदेव आशा व आशीर्वाद से। १०५ प्र.म.आ. विजयामति, मजपथा प्रायश्चित्त विधान - २७
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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