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भाग करें उसके प्रथम भाग में प्रतिक्रमण न करें तो एक पंचकल्याणक, दूसरे भाग में प्रतिक्रमण न करें तो उतने उपवास, तीसरे भाग में प्रतिक्रमण न करें तो एक लघु कल्याणक प्रायश्चित्त है । (इति उत्तर पुराण) ___यदि किसी मुनि ने किसी अप्रासुक भूमि में एक बार योग धारण किया तो प्रतिद्रमण पूर्वका , चांद काटी अप्रासुक भूमि में अनेक बार योग धारण करे तो पंचकल्याणक, यदि कोई मुनि किसी योग की भूमि को मनोहर देखकर उससे मोह करे तो पंचकल्याणक, यदि कोई मुनि किसी योग को मनोहर भूमि को देखकर उस पर अहंकार करे तो पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है। ___ जो मुनि गाँव, नगर, घर, वसतिका आदि के बनवाने में दोषों को न जानता हुआ उसके बनवाने का उपदेश करे तो एक कल्याणक, यदि उसके बनवाने के दोषों को जानता हुआ आरंभ का उपदेश करे तो पंच कल्याणक, यदि वह गर्व वा अहंकार से उनके बनवाने का उपदेश करे तो पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है। ___जो मुनि पूजा के आरंभ से उत्पन्न होने वाले दोषों को नहीं जानता हुआ एक बार गृहस्थों को पूजा करने का उपदेश करे तो उसके आरंभ के अनुसार आलोचना या कायोत्सर्ग से लेकर उपवास, यदि वे मुनि बार-बार उपदेश करे तो कल्याणक, जो मुनि पूजा के आरंभ के दोषों को जानते हुए एक बार उपदेश करे तो मासिक पंच कल्याणक, तथा जिस पूजा के उपदेश देने से छहकायिक जीवों का वध होता हो तो छेदोपस्थापना अधवा पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है।
यदि कोई सल्लेखना करने वाला साधु क्षुधा, तृषा से पीडित होकर लोगों के न देखते हुए भोजन कर ले या सल्लेखना न करने वाला साधु अनेक उपवासो के कारण भूख प्यास से पीडित होकर लोगों के न देखते हुए भोजन कर ले तो प्रतिक्रमण सहित उपवास, यदि ऊपर लिखे दोनों प्रकार के मुनि किसी रोगी मुनि को देखते हुए भोजन कर ले तो पंच कल्याणक प्रायश्चित्त है।
यदि कोई मुनि सम्यग्दर्शन से भ्रष्ट हुए लोगों के साथ या व्रतों से भ्रष्ट हुए लोगों के साथ विहार करे उनकी संगति करे तो पंच कल्याणक, यदि वे अरहंत,
प्रायश्चित्त विधान - १३३