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... यदि कोई रोगी मुनि चार महीने के बाद केशलोंच करें तो एक उपवास, यदि कोई रोगी मुनि एक वर्ष के बाद केशलोंच करे तो तीन उपवास, यदि कोई रोगी मुनि पांच वर्ष के बाद केशलोच करें तो पंचकल्याणक, यदि कोई नीरोग मुनि चार महीने के बाद एक वर्ष के बाद वा पांच वर्ष के बाद केशलोंच करे तो निरंतर पंचकल्याणक प्रायश्चित्त है।
यदि कोई मुनि किसी उपसर्ग से वस्त्र ओढ़ ले तो एक उपवास, यदि कोई मुनि व्याधि के कारण वस्त्र ओढ़ ले तो तीन उपवास, यदि कोई मुनि अपने दर्प से वस्त्र ओढ़ ले तो पंच कल्याणक, अन्य किसी कारण से वस्त्र ओढ़ ले तो पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है।
यदि कोई मुनि एक बार स्नान करे तो एक पचंकल्याणक, यदि एक बार दंत धावन करे तो एक पंच कल्याणक, यदि एक बार कोमल शय्या पर शयन करे तो एक कल्याणक, यदि इनको बार-बार करें तो पंच कल्याणक, यदि कोई मुनि प्रमाद से एक बार बैठकर भोजन करे तो पंच कल्याणक, यदि कोई मुनि प्रमाद से दिन में दो बार भोजन करे तो पंचकल्याणक, यदि कोई मुनि अहंकार से एक बार बैठकर भोजन करे या दिन में दो बार भोजन करे तो दीक्षा छेद, यदि कोई मुनि बार-बार बैठकर आहार ले अथवा बार-बार दिन में दो बार भोजन करे तो पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है। ___ यदि कोई मुनि पांच समिति, पांच इंद्रियों को निरोध, भूशयन, केशलोंच
और अदंत धावन इन तेरह मूलगुणों में एक संक्लेश परिणमन करे तो एक कायोत्सर्ग, यदि कोई मुनि इन तेरह मूलगुणों में बार-बार संक्लेश परिणाम करे तो एक उपवास, यदि कोई मुनि बाकी के पंद्रह मूलगुणों में एक बार संक्लेश परिणाम करे तो पंच कल्याणक, यदि कोई मुनि इन पंद्रह मूलगुणों में बार-बार संक्लेश परिणाम करे तो पुनर्दीक्षा प्रायश्चित्त है। (इति मूलगुण) ॥
यदि कोई मुनि मर्यादा पूर्वक स्थिर योग धारण करे और उसको मर्यादा से पूर्व समाप्त कर दे तो जितना शेष काल रहा उतने उपवास, एक महीने के तीन
प्रायश्चित्त विधान - १३२