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________________ AAKIRTraxxxसससससम्म विक्रमाशिवाजाध व दो हजार एक समय चैत्र मास की तेरस (महावीर जयंति) गुरुवार पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र के दिन कन्या लग्न में मैने आचार्य आदिसागरजी महाराज अंकलीकर द्वारा रचित दंड (प्रायश्चित्त) ग्रंथ (प्राकृत) महाकृति का संस्कृत में अनुवाद किया। ॥ इति ॥ हिन्दी टीकाकर्ती की प्रशस्ति अथ श्री मूलसंधे, सरस्वति गच्छे, बलात्कार गणे, श्री कुंदकुंदाचार्य परंपरायां, दिगम्बराम्नाये परम पूज्य अंकलीकर चारित्र चक्रवर्ती मुनिकुंजर सम्राट प्रथमाचार्य आदिसागरस्य पट्टशिष्य परम पूज्य तीर्थभक्त शिरोमणि समाधि सम्राट, अठारह भाषा-भाषी, उद्भट विद्वान, आचार्य श्री महावीरकीर्ते: संघस्था कलिकाल सर्वज्ञ, वात्सल्य रत्नाकर सन्मार्ग दिवाकर आचार्य विमल सागरस्य शिष्या १०५ प्रथम गणिनि आर्यिका ज्ञान चिंतामणि, रत्नत्रय हृदय सम्राट विजयमति इयं प्रायश्चित्त विधानीत्र हिंदी टीका विरचितामया आध मगशिर शुक्ला तृतीया शुक्रवासरे, संध्या काले पूर्वाह रात्रौ वीर नि. सं. २५२९ परिसमाप्ता ता. ६-१२-२००२ गजपंथा सिद्धक्षेत्रे । ॥ इति ।। प्रायश्चित विधान-१२४
SR No.090385
Book TitlePrayaschitt Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAadisagar Aankalikar, Vishnukumar Chaudhari
PublisherAadisagar Aakanlinkar Vidyalaya
Publication Year
Total Pages140
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size3 MB
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