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________________ सहजानन्दशास्त्रमालाया अथेन्द्रियज्ञानस्यैव प्रलोममनुत्पन्नं च ज्ञातुमशक्यमिति वितर्कयति अत्थं अक्खणिवदिदै ईहापुब्वेहिं जे विजागति। ' तेसिं परोक्खभूदं णादुमसक्कं ति पण्णत्तं ॥४३॥ इन्द्रियनियमित प्रयों, को ईहापूर्व जानते हैं जो। उनके जाननमें नहि, परोक्षके अर्थ पा सकते ॥४०॥ अथमनिपतितमीहाग विजानन्ति । तेषां परोलभूतं ज्ञातुमशक्यमिति प्राप्तम् ॥४०॥ ये खलु विषयविषयिसन्निपातलक्षणमिन्द्रियार्थसन्निकर्षमधिगभ्य क्रमोपजायमानेनेहादि.) नामसंज्ञ-यत्व अक्वणिवदिद ईहापून्त्र ज त परोक्खभूद असक्क लि पण्णत्त । धातुसंज्ञ--णि पड मतने, वि जाण अवबोधने, का अवबोधने । प्रातिपदिक-अर्थ अक्षनिपतित ईहापूर्व यत् तत् परोक्षभूत है। तथ्यप्रकाश.... ( १ ) केवलज्ञानकी यह दिव्यता है, अलौकिकता है कि वह वर्तमानपर्याय की तरह प्रतीत अनागत पर्यायोंको भी बिना क्रमके, बिना इन्द्रिय मनके, बिना व्यवधानके साक्षात् प्रत्यक्षा करता है। (२) यदि परिपूर्ण विकसित ज्ञान त्रिलोक त्रिकालवर्ती सब पदाथों को एक साथ स्पष्ट न जाने तो वह ज्ञान ही नहीं । (३) केवली भगवान परद्रव्यपर्यायोंको जाननमात्र रूपसे जानता है । (४) केवलो भगवान तन्मयतासे तो सहजानंदमय निज शुद्धात्मा • में स्वपर्यायको जानता है। (५) ज्ञानी जन परद्रव्य गुण पर्यायवा परिज्ञान जाननमात्ररूपसे करता है । (६) ज्ञानी जन तन्मयतासे तो केवल स्व में संवेदन पर्यायको जानता है। सिद्धान्त ----(१) प्रभु अन्तर्जेयाकारपरिणत अपने आपको जाननेसे प्रात्मज्ञ है । (२) प्रभु त्रिलोकत्रिकालगत सर्व द्रव्य पर्यायोंको जाननेसे सर्वज्ञ हैं। दृष्टि---१-- शुद्ध निश्चयनय [४६] । २- स्वाभाविक उपचरित स्वभावव्यवहार 8888888888 ission प्रयोग---ज्ञानको सहज विकसित कलाको अनुभवनेके लिये ज्ञानके सहज स्वभावको आत्मस्वरूपमें अनुभवना ।। ३६ ॥ ___ अब नष्ट और अनुत्पन्नको जानना अशक्य इन्द्रियज्ञानयो हो है, यह वितकित करते हैं अर्थात् युक्तिपूर्वक निश्चित करते हैं--- [ये] जो [अक्षनिपतितं] इन्द्रियगोचर [अर्थ] पदार्थ को [ईहापूर्वेः] ईहादिक द्वारा [विजानन्ति] जानते हैं, [तेषां] उनके लिये परोक्षभूतं] परोक्षभूत पदार्थको [ज्ञातु] जानना [अशक्यं] अशक्य है [इति प्रज्ञप्तं] ऐसा सर्वजदेवने कहा है। तात्पर्य-इन्द्रियज्ञान ही भूत भविष्यत् पर्यायोंको नहीं जान सकता।
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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