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________________ यहजानन्दभास्त्रमालायां वधारितविशेषलक्षणा एकक्षण एवावबोधसीधस्थितिमवतरन्ति । न खल्वेतदयुक्तं दृष्टाविरोघात् । दृश्यते हि छद्मस्थस्यापि वर्तमानमिव व्यतीतमनागतं वा वस्तु चिन्तयता संविदालम्बितस्तदाकार: । किंच चित्रपटोस्थानीयत्वात् संविदः । यथा हि चित्रपटचामतिवाहितानामनुपमूलधातु-वृतु वर्तने । उभयपदविवरण---लक्कालिगा लत्कालिका: सच्चे म मदसम्भवा सदसद्भूता: पज्जया पर्याया:--प्रबहातासि तासा-पष्ठी वह । ते-प्रबह पारणे ज्ञाने-सप्तमी एक० । विसेसदो विशेषतः अव्यय पंचभ्यर्थे । दावजादी द्रव्यजानौनां...ठी बह। निरक्ति-सरि अयन्ते इति विशिष्टलक्षण जिनके ऐसी वे एक क्षण में ही मानमंदिरमें स्थितिको प्राप्त होती है । वास्तवमें यह अयुक्त नहीं है; क्योंकि १- उसका दृष्टके साथ अविरोध है। जगत्में वर्तमान वस्तुको तरह भूत और भविष्यत् वस्तुका चितवन करते हुए छद्मस्थके भी ज्ञाननिष्ठ ज्ञेयाकार देखा जाता है । २-- और क्योंकि ज्ञान चित्रपटके समान है सो जैसे चित्रपट में अतीत, अनागत और वर्तमान वस्तुओंके प्रतिभास्य प्राकार पक्षात एक क्षणमें ही भासित होते हैं। इसी प्रकार ज्ञानरूपी भित्तिमें भी अतीत अनागत और वर्तमान पर्यायोंके ज्ञेयाकार साक्षात् एक क्षणमें ही भासित होते हैं । (३) और क्या कि सर्व ज्ञेयाकारोंको वर्तमानता पविरुद्ध है। जैसे चित्रपट में नष्ट और अनुत्पन्न वस्तुमोके पालेख्याकार वर्तमान हो हैं, इसी प्रकार ज्ञान में अतीत और अनागत पर्यायोंके ज्ञेयाकार वर्तमान हो हैं । प्रसंगविवरण----अनन्तरपूर्व गाथामें ज्ञान और ज्ञेयका निर्देशन किया गया था। अब इस गाथामें यह बताया गया है कि प्रभुके ज्ञान में वर्तमान पर्यायोंकी तरह भूत भविष्यको पर्यायें भी रहती हैं। तथ्यप्रकाश----(१) चित्रपट में भूत, वर्तमान, भविष्यके महापुरुषोंके चित्र लिखित हों तो दिखने में तो सब वर्तमान जैसे हैं । (२) प्रभुक्रे ज्ञान में भूत, वर्तमान, भविष्यकी सब पर्याय प्रतिभासित हैं तो जाननेमें तो सब वर्तमानकी तरह उसी समयमें हैं । (३) छदास्य पुरुष भी जब भूत भविष्यको पर्यायोंका मनमें चिन्तन कर रहा हो तब उन भूत भविष्य पर्यायोंका प्रतिभास तो वर्तमानको तरह उसो समयमें है । (४) केवलज्ञानी समस्त परद्रव्य पर्यायोंको जाननमात्ररूपसे जानते हैं, तन्मय होकर नहीं। (५) केवलज्ञानी तो केवलज्ञानादि गुणोंके प्राधारभूत अपनी परिपूर्ण विकसित पर्यायको ही स्वसंवेदनाकारसे तन्मय हो जानते हैं । (६) साधक पुरुष भी अपने निश्चयरत्नत्रयपर्यायको ही तन्मय होकर जानते हैं. अन्य द्रव्य गुण पर्यायोंको जाननमात्ररूपसे जानते हैं । (७) मात्माकी ज्ञानशक्ति ऐसी ही अद्भुत है कि जिससे निराकरण ज्ञानी आत्मा सर्व त्रिलोकत्रिकालवर्ती समस्त पदार्थोको जानता ही है। नाmrauD
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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