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________________ प्रवचनसार: ६३ प्रयातिवाहितानागतानामपि द्रव्यपर्यायाणां तादात्विकवत् पृथक्त्वेन जाने वृत्तिमुद्योतयतितक्कालिगेव सव्वे सदसन्दा हि पजया तासि । ते ते गाणे विसेसदो दव्वजादीगणं ॥ ३७ ॥ द्रव्यजातियोंके सब वर्तमान प्रवर्तमान पर्यायें । aaraat ज्यों, विशेषसे ज्ञानमें वर्तें ॥३७॥ तात्कालिका इव सर्व सदसता हि पर्यायास्तासाम् वर्तते ते ज्ञाने विशेषन दव्यजातीनाम् ॥ २७ ॥ fara foransतीनां त्रिसमयावच्छिन्नात्मलाभ भूमिकत्वेन क्रमप्रतपत्स्वरूपसंपद: सद्भूतासद्भूततामायान्तो में यावन्तः पर्यायास्तं तावन्तस्तात्कालिका इवात्यन्तसंकरेणाप्य नामसंज्ञ- तक्कालिंग इव स सदसव हि पज्जय ताण विदो व्यजादि । धातुसंज्ञ-स वर्तत । प्रातिपदिक- तात्कालिक इव सर्व सदसद्भुत हि पर्याय वा रात् ज्ञान विशेषतः द्रव्यजाति । उत्पन्न पर्याय अपने कार्यमें निरपेक्ष है । १२- सभी पदार्थ प्रमेयत्व गुणास्वभाव से ज्ञान में ज्ञेय होते हैं । १३ - ज्ञाता आत्मा ज्ञानगुण स्वभावसे सत् विषयक ज्ञान करता रहता है । सभी पदार्थ अपने अपने स्वरूप में स्वभावानुरूप प्रतापवंत प्रवर्ता करते हैं । १४ सिद्धान्त- १ - श्रात्मा द्वारा जेय आत्मा है। २ श्रात्मा के द्वारा ज्ञेय सर्व सत् हैं । दृष्टि-- १ - कारककार किभेदक सद्भूत व्यवहारनय [ ७३] । २- स्वाभाविक उपचरित स्वभावव्यवहार [ १०५ ] | WW प्रयोग - स्वयं सहज जो ज्ञेय हो सो होग्रो, अपनेको तो सहज ज्ञानस्वभावमात्र धनुभवता ॥३६॥ ne gariat प्रतीत और अनागत पर्यायें भी तात्कालिक पर्यायोंकी भाँति पृथक् रूप से ज्ञानमें होनेको उद्योतित करते हैं याने दिखाते हैं-- [तासाम् द्रव्यजातीनाम् ] उन जीवादि व्यातियोकी [ते सर्वे ] वे समस्त [ सदसद्द्भूताः हि ] विद्यमान और अविद्यमान [पर्यायाः ] पर्याये [तात्कालिकाः इव] वर्तमान पर्यायोंकी तरह [ विशेषतः ] विशिष्टता पूर्वक अर्थात् अपने ते भिन्न-भिन्न स्वरूपसे [ज्ञाने वर्तन्ते ] ज्ञानमें वर्तती हैं । तात्पर्य केवलज्ञान समस्त द्रव्योंकी समस्त पर्यायोंको युगपत् जानता है । टोकार्थ- वास्तव में समस्त हो द्रव्यजातियोंके पर्यायोंकी उत्पत्तिकी मर्यादा तीनों कालीमै आत्मलाभ की भूमिकासे युक्तपना होनेके कारण क्रमपूर्वक तपती हुई स्वरूपसम्पदा anit, fararaat और श्रविद्यमानताको प्राप्त जो जितनी पर्यायें हैं, वे सब तात्कालिक अर्थात् वर्तमानकालीन पर्यायोंकी भाँति अत्यंत मिश्रित होनेपर भी निश्चित हैं सब पर्यायोंके
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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