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________________ प्रवचनसार: अशातीन्द्रियस्वादेव शुद्धात्मनः शारोरं सुखं दुःखं नास्तीति विभावयति---- सोक्खं वा पुग्ण दुक्खं केवलगाणिम्म शात्थि देहगदं । जम्हा अदिदियत्तं जादं तम्हा दु तं शोयं ॥२०॥ केवलज्ञानो प्रभुके, हुआ प्रतीन्द्रियपना है इस कारण । शारीरिक सुख अथवा, दुख भो नहि केवलो प्रभुके ॥२०॥ सौख्य का पुनदुख केवलज्ञानिनो नास्ति बेहगतम् । घरमादतीन्द्रियत्वं जातं तरमा तज्ज्ञेयम् ॥ २० ॥ कायत एवं शुद्धात्मनो जातवेदस इच कालायसगोलोत्कुलितपुद्गलाशेषविलासकल्पो नास्तीन्द्रियग्रामस्तत एवं धोरधनधाताभिघात रंगरास्थानीयं शरीरगतं सुखदुःखं न स्यात् ॥२०॥ नामश-सोक्व वा पुण दुधख के वरणणि ण देहगद ज अदिदियन जाद त दुल गोय। धातुसंजअस सत्तायो, जा प्रादुर्भाव । प्रातिपदिक . सौख्य या पुनर् दुःख जवलशानिन् न दहगत यत् अतीन्द्रियत्व जात तत् तु शेय। मुलधातु-...असा भुवि, जनि प्रादुर्भावे । उभयपद विवरण-----सोक्खं सौख्यं दुक्खं दुःखं देहगद देहात-प्रथमा एकवचन । केवलणाणिस्रा केवलजानिन:-ठी एक० । जम्हा यस्मात् तम्हा तस्मात्पचमी एक वाणन तु-अव्यय । अत्यि अरित-प्रतमान लट 3 पुरुष एकल तत्-प्रथमा एक । गोयं जयं-प्र० ए० कृदन्त किया। निरुक्ति-दिह्यते इति देहः । समास--(दहे गतं देगतं २० । तात्पर्य - अतीन्द्रियपना होनेसे प्रभुके सुख और दुःख नहीं है, किन्तु अतीन्द्रिय ही अनन्त ज्ञान व आनन्द है। टीकार्थ---जैसे अग्निको लोहेके गोलेके तप्त पुद्गलोंका समस्त विलास नहीं है उसी प्रकार शुद्ध प्रात्माके अर्थात् केवलज्ञानी भगवान के इन्द्रियसमूह नहीं है। इस कारण जैसे अग्नि को घनके घोर प्राधातोंकी परम्परा नहीं है, इसी प्रकार शुद्ध यात्माके शरीर सम्बन्धी सुख का S का प्रसंगविवरण ---- अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि परमात्मा इन्द्रियोंके बिना ही मनन्तशक्ति अनन्त परिपूर्ण ज्ञानानन्दको अनुभवत्ता है ! अब इस माथामें बताया गया है * कि अतीन्द्रिय होनेसे परमात्माके शारीरिक सुख दुःख नहीं हैं । नई सध्यप्रकाश---(१) परमात्माका ज्ञान और प्रानन्द स्वाभाविक है, अतीन्द्रिय है, परिपूर्ण है। (२) जैसे लोहे के सम्बन्ध का अभाव होनेसे अग्नि का घनघालसे पिटना नहीं होता पोसे ही इन्द्रियग्राम न होनेसे भगवान के शारीरिक सुख दुःखरूप आपदा नहीं रहती। (३) सिद्ध भगवानके तो शरीर नहीं है वहां तो शारीरिक सुख दुःखका व इन्द्रियज ज्ञान प्रानन्द का संदेह भी किसोको नहीं हो सकता। (४) अरहंत भगवानके शरीरका सम्बन्ध तो है, किन्तु क्षायोपशमिक ज्ञान दर्शन न होनेसे प्रभु अतीन्द्रिय हैं, ज्ञानावरणादि धातिया कर्मोका ।
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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