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________________ प्रवचनसार—सप्तदशाङ्गी टीका ३२६ युक्तत्वेन यथोदितस्निग्धरूक्षत्वस्पर्शविशेषसंभवेऽप्यमूर्तस्यात्मनो रूपादिगुणयुक्तत्वाभाबेन यथो. दितस्निग्धाक्षत्वस्पर्श विशेषासंभावनया चैकाङ्गविकलत्वात् ।।१७३।। प्रथमा एकवचन 1 अदि बध्यते-वर्त० अन्य० एक० भावकर्मप्रकिया। फारहि स्पर्शः अण्णमोहि अन्योन्यः तृतीया बहु० । बज्झदि वनाति-वर्त अन्य एक० क्रिम । किध कथं अव्यय । पोग्गलं पोदगलं काम कर्म-द्वितीया एकवचन । निरुक्ति-स्पर्शनं स्पर्शः स्पृश्यते य: स: स्पर्शः, विपर्ययतेसम्म यः स विपरीत: वि परि इणू गतौ । समास-तिस्माद् विपरीतः तविपरीत: १३। है, क्योंकि कर्ममें स्निग्धरूक्षपना रहा प्रायो, किन्तु प्रात्मामें तो स्निग्धरूक्षपना असंभव हो है । (३) प्रश्न....दोनों मूर्तों में तो बन्ध हो सकता है, किन्तु एक अमूर्त हो व दुसरा मूर्त हो उत्तका परस्पर बन्ध कैसे हो सकता है ? सिद्धान्त -- १-- अमूर्त आत्मामें मूर्त कर्मों का बंध कहना मात्र उपचार काथन है । दृष्टि१एक जात्याधारे अन्य जात्याधेयोपचारक व्यवहार (१४२) । प्रयोग--आत्मा व कर्ममें निमित्तनैमित्तिक बन्ध होनेपर भी आत्मसत्त्वकी दृष्टि करके मात्माको समस्त परतत्वोंसे पृथक् देखना ।। १७३।। अब यह अमूर्त होनेपर भी प्रात्माके इस प्रकार बंध होता है यह सिद्धान्त निर्धारित करते हैं- [रूपादिकः रहितः] रूपादिकसे रहित प्रात्मा यथा] जैसे [रूपादोनि] रूपादि को [ध्याणि च गुणान] रूपी द्रव्योंको और उनके गुणोंको [पश्यति जानाति देखता है और जानता है [तथा] उसी प्रकार [तेन] रूपोके साथ [बंधः जानीहि] बंध होता है ऐसा जानो। - - ..M मा तात्पर्य----ग्ररूपी अात्मा जैसे रूपी द्रव्यको जानता है वैसे जोध रूपी पुद्गलकर्मको बांधता है। टीकार्थ—जिस प्रकारसे रूपादिरहित जीवरूपी द्रव्योंको तथा उनके गुणोंको देखता है तथा जानता है, उसी प्रकार रूपादिरहित जीव रूपी कर्मपुद्गलोंके साथ बंधता है; क्योंकि यदि ऐसा न हो तो अमूर्त मूर्तको कैसे देखता-जानता है ? इस प्रकार यहाँ भी प्रश्न अनिवार्य है। और ऐसा भी नहीं है कि अरूपीका रूपीके साथ बंध होने की बात अत्यन्त दुर्घट होनेसे उसे दान्तिरूप बनाया है, परन्तु दृष्टान्त द्वारा आबालगोपाल सभीको स्पष्ट समझाया गया है। स्पष्टीकरण----जैसे बाल-गोपालका पृथक रहने वाले मिट्टीके बलको अथवा सच्चे बलको देखने और जाननेपर बैलके साथ संबंध नहीं है तो भी विषयरूपसे रहने वाला बैल जिनका निमित्त है ऐसे उपयोगमें भासित वृषभाकार दर्शन ज्ञान के साथ का संबंध बैलके साथके संबंध. रुपयवहारका साधक अवश्य है; इसी प्रकार प्रात्माका अरूपी होनेके कारण स्पशं शून्यपना होनेसे कर्मपुद्गलोके साथ संबंध नहीं है तो भी एकादगाहरूपसे रहने वाले कर्म पुद्गल जिनके inima.... . ......... सम्मम्मम्म म्
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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