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________________ सहजानन्दशास्त्रमालायां B8EEEEssesNEESMSSSSSSBE RASTRACCIAS RAVE मन अथ कथममूर्तस्यात्मनः स्निग्धरूक्षत्वाभावाबन्धो भवतीति पूर्वपक्षयति मुत्तो रूवादिगुणो बज्झदि फासेहि अण्णामण्णा हिं। तविवरीदो अप्पा बज्झदि किंध पोग्गलं कम्म ॥१७३॥ रूपादिगुरपी मुतिक, अन्योन्यस्पशोंसे बँध जाले । ___ कैसे अमूर्त प्रात्मा, बांधे पौद्गलिक कर्मोको ।।१७३१ मूतों रूपादिगुणो बध्यते स्पर्शेरन्योन्यैः । तद्विपरीत आत्मा बध्नाति कथं गौद्गलं काम ।। १७३ ।। मूर्तयोहि तावत्पुद्गलयो रूपादिगुणयुक्तत्वेन यथोदितस्निग्धरूक्षस्पर्शविशेषादन्योन्यवः न्धोऽवधार्यते एव । प्रात्मकर्मपुद्गलयोस्तु स कथमवधार्यते । मूर्तस्य कर्मपालस्यरूपादिगुण नामसंज--मुत्त रूवादिगुण फास अग्णमण्ण तग्विबरीद अप्प किंध पोग्गल कम्म । धातुसंज्ञ..-बंध बन्धने । प्रातिपदिक--मूर्त रूपादिगुण स्पर्श अन्योन्य तद्विपरील आत्मन् काश्य पौदगल्द कर्मन् । मूलधातुबन्ध बन्धने । उभयपदविवरण-मुत्तो मूर्तः स्वादिगुणो रूपादिगुणः तचिवरीदो तद्विपरीत: अप्पा आत्मा अब अमूर्त आत्माके, स्निग्धरूक्षत्वका प्रभाव होनेसे बंध कैसे होता है ? इस प्रकार पूर्व पक्ष उपस्थित करते हैं- [रूपादिगुणः] रूपादिगुणयुक्त [मूर्तः] मूर्त पुद्गल [अन्योन्यः स्पर्शः] परस्पर स्निग्ध रूक्ष स्पोंसे [बध्यते] बंधता है; लेकिन [तद्विपरीतः आत्मा]. उससे विपरीत अमूर्त प्रात्मा [पौलिक कर्म] पोद्गलिक कर्मको कथं] कैसे [बध्नाति] बांधता है। तात्पर्य----अमूर्त प्रात्मा मूर्त पुगलकर्मोको कैसे बाँध लेता है ? यह यहाँ प्रश्न हुना।। टीकार्थ-मूर्त पुद्गलोंका तो रूपादि मुणयुक्तपना होसे यथोक्त स्निग्ध रूक्षत्वरूप स्पर्शविशेषके कारण उनका पारस्परिक बंध अवश्य निश्चित किया जा सकता है, किन्तु मारमा और कर्मपद्गलका बंध कैसे समझा जा सकता है ? क्योंकि मूर्त कर्मपुद्गलके रूपादिगुणयुक्त पना होनेसे यथोक्त स्निग्ध रूक्षत्वरूप स्पर्शविशेष संभव होनेपर भी अमूर्त आत्माके रूपादि: गुणयुक्तताका प्रभाव होनेसे यथोक्त स्निग्धरूक्षत्वरूप स्पर्शविशेष प्रसंभव होनेसे वहाँ एक अंग की विकलता है। प्रसङ्गविवरण-अनन्तरपूर्व गाथामें जीवका स्वलक्षण बताया गया था। अब इस माथामें प्रश्न किया गया है कि स्निग्धपने व रूक्षपनेका प्रभाव होनेसे अमूर्त प्रात्माके बन्ध कैसे हो सकता है ? तथ्यप्रकाश---(१) मूर्त पुद्गल पुद्गलोंमें सो स्निग्धपना रूक्षपनाके कारण परस्पर बन्ध होना असंदिग्ध है । (२) प्रश्न--अमूर्त प्रात्मामें मूर्तकर्मपुद्गलका बन्ध कैसे हो सकता 980882008- comsasara Sou r erence m edegeneration Mitoconseniwage SERRAO
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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