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________________ सहजानन्दशास्त्रमालायां ३२२ अथात्मनः शरीरत्वाभावमवधारयति रालियो य देहो देहो वेउव्वियो य तेजइयो । याहारय कम्म पुग्गलदव्वापगा सव्वे ॥ १७१ ॥ श्रदारिक वैयिक, आहारक तैजस कार्माण तथा । ये सब शरीर पांचों हैं पुद्गलद्रव्यरूपी जड़ ॥ १७१ ॥ औदारिकश्च देहो देहो वैक्रियिकश्च तैजसः । आहारकः कार्मणः पुद्गलद्रव्यात्मकाः सर्वे ।। १७१ ॥ तो ह्यौदारिकवैयिकाहोर कतैजसकार्मणानि शरीराणि सर्वाण्यपि पुद्गलद्रव्यात्म कानि । ततोऽवधार्यते न शरीरं पुरुषोऽस्ति ।। १७१ ।। नामसंज्ञ - ओरालिअ य देह देह वेगुव्बिअ य तेजइअ आहारय कम्मइअ पुग्गलदब्बप्पग सब्ब ।। धातुसंज्ञ - आ हर हरणे । प्रातिपदिक औदारिक च देह देह वैक्रियक च तैजस आहारक कार्मण पुगलद्रव्यात्मक सर्व । मूलधातु-आ हृञ हरणे । उभयपदविवरण - ओरालिओ औदारिकः देहो दह aforn वैयिकः तेजइओ तैजसः आहारय आहारक: कम्मइओ कार्मण:- प्रथमा एकवचन । पुग्गलदव्वपापुद्गलद्रव्यात्मकाः सव्वे सर्वे प्रथमा बहुवचन । निरुक्ति - उदारे भवं औदारिक, विविधकरणं . विक्रिया विक्रिया प्रयोजनं यस्य तत् वैक्रियकं आह्रियते निर्वर्त्यते यत्तत् आहारकं, तेजसि भवं तैजस, कर्मणामिद कार्मणम् । समास - पुद्गलद्रव्यं आत्मकं येषां ते पुद्गलद्रव्यात्मकाः ॥ १७१ ॥ "ज्ञानस्वरूप अन्तस्तत्त्व में रमकर संतुष्ट रहना ॥ १७० ॥ आत्मा शरीरपनेका प्रभाव निश्चित करते हैं - [ औदारिकः देहः च ] प्रौदा: fre शरीर और [क्रियिकः देहः ] वैक्रियिक शरीर, [ तैजसः ] तैजस शरीर [ श्राहारकः] | आहारक शरीर [च] और [ कार्मरणः ] कार्मारण शरीर [ सर्वे ] सब [ पुद्गलद्रव्यात्मकाः ] पुद्गलद्रव्यात्मक हैं । तात्पर्य - श्रीदारिकादि सभी शरीर पुद्गलद्रव्यात्मक हैं जीवरूप नहीं । टोकार्थ - प्रौदारिक, वैक्रियिक, ग्राहारक, तैजस और कार्मण सभी शरीर पुद्गलद्रव्यात्मक हैं । इससे निश्चित होता है कि आत्मा शरीररूप नहीं है । प्रसंगविवरण - अनन्तरपूर्व गाथामें बताया गया था कि आत्मा शरीरका कर्ता भी नहीं है । ब इस गाथामें बताया गया है कि आत्माके तो ऊपर ही नहीं है । तथ्य प्रकाश - ( १ ) शरीर पाँच प्रकारके हैं- प्रौदारिक, वैक्रियिक, ग्राहारक, तैजस व कार्मण । (२) पांचों ही शरीर पुद्गलद्रव्यात्मक हैं, अतः शरीर पृथक् रहा. श्रात्मा पृथक् रहा । (३) प्रौदारिक शरीर, वैक्रियिक शरीर व प्राहारकशरीर प्राहारवर्गणा नामक पुद्गलस्कन्धों से बनता है । ( ४ ) तेजस शरीर तैजस वर्गणा नामक पुद्गलस्कन्धोंसे बनता है । (५)
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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