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प्रवचनसार-सप्तदशांगी टीका
शुभयोगस्वरूपं रूपयति-
विसयकसाथोगाढो दुस्सुदिदुचित्तदुट्टगोठिजुदो । उग्गो उम्मग्गपरो उपयोगो जस्त सो महो ॥ १५८ ॥ विषयकषायविरंजित, चिन्तन सेवन श्रवरण मलीमस हो ।
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उग्र उन्मार्गगामी उपयोग अशुभ जीवका है ॥ १५८ ॥
गाढो दुःश्रुतिदृषिदुष्टगोष्टियुतः । उग्र उन्मार्गपर उपयोगो यस्य सोऽशुभः ॥ १५८ ॥ .. विशिष्टोदयदा विश्रान्तदर्णन चारित्रमोहनीयपुद्गलानुवृत्तिपरत्वेन परिग्रहीताशोभनोपरागत्वात्परमभट्टारक महादेवाचि देवपरमेश्वरार्हत्सिद्धसाधुभ्योऽन्य त्रोन्यागंश्रद्धाने विषयकषायदुःश्र दुराशयदुष्ट से वनोग्रताचरणे च प्रवृत्तोऽशुभोपयोगः ।। १५८ ।।
Sataissancer भोगाढ हुस्सुदिदुच्चित्त दुट्टगोङिजुद उग्ग उम्मग्गपर उओग ज त असुह | धातुसंज्ञ- कस तन् करणे । प्रातिपदिक विषयकसायावगाढ दुःश्रुतिदुश्चित्तदुष्टगोष्टियुक्त उम्र उन्मार्गपर यत् तत् अशुभ | मूलधातु विसित्र बन्धने, कष सन् करणे । उभयपदविवरण -- बिसयकसाओविषयकषायावगाढः दुस्सुदिदुश्चित्तदृगोजुद दु:श्रुतिदृश्चित्तदुष्ठगोष्ठियुतः उग्गो उग्र: उम्मग्गपरी जन्मापरः उवओ उपयोगः सो सः असुहो अशुभः प्रथमा एकवचन । जस्स यस्य-षष्ठी एकवचन ।
- विषिण्वन्ति संबध्नन्ति स्वात्मकतया विषयिण इति विषयाः कषन्ति आत्मानं ये इति कषायाः, गोष्ठः स्त्रियां ङीप गोष्ठ समुहे भ्वादि, ओचनं उग्रः उन् प्रचण्डे दिवादि उच्+र गादेशः 1 समास-विषयाश्च कपायाश्व इति विषयकषायाः तेषु अवगाढः इति विषयकषायावगाढ़ || १५५ ।।
कुसंगति में लगा हुआ है. [ उग्रः ] उग्र है तथा [ उन्मार्गपरः ] उन्मार्ग में लगा हुआ है, [स: भः] वह उपयोग अशुभोपयोग है ।
तात्पर्य - विषयकषाय में लोन उपयोग प्रशुभोपयोग है ।
टीकार्थ -- विशिष्ट उदयदशा में रहने वाले दर्शन मोहनीय और चारित्रमोहनीयरूप पु धनुसार परिणतिमें लगा होनेसे अशुभरागको ग्रहण करनेसे परम भट्टारक, महादेवाविदेव परमेश्वर त सिद्ध और साधुको छोडकर श्रन्य-उन्मार्गको श्रद्धा करने में तथा विषय, कुश्रवण, कुविचार और कुसंग और उग्रताका प्राचरण करने में प्रवृत्त हुया उपयोग भोपयोग है ।
-प्रसंगविवरण- घनन्तरपूर्व गाथामें शभोपयोगका स्वरूप बताया गया था। अब इसमें योग के स्वरूपका प्ररूपण किया गया है।
तथ्यप्रकाश - ( १ ) विपरीत मार्गके श्रद्धानमें प्रवृत्त हुआ उपयोग अशुभोपयोग है । (२) विषय, कषाय, कुशास्त्रश्रवण- खोटा श्रवण, अपध्यानादिक खोटा श्राशय, कुसंग व