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________________ प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका રષ્ઠ स्वादेशस्यान्वयव्यतिरेकानुविधायित्वासिद्धेः । एवं सप्रदेशत्वे हि कालस्य कुत एकद्रव्यनिबन्धनं लोकाकाशातल्यासंख्येयप्रदेशत्वं नाभ्युपगम्येत । पर्यायसमयाप्रसिद्धः । प्रदेशमात्रं हि द्रव्य समयमक्षिकामतः परमाणोः पर्यायसमयः प्रसिद्धयति । लोकाकाशतुल्यासंख्येयप्रदेशत्वे तु द्रव्यसमयस्य क्लस्त्या तत्सिद्धिः । लोकाकाशतुल्यासंख्येयप्रदेश कद्रव्यत्वेऽपि तस्येक प्रदेशमतिकामतः परमागोस्लसिद्धिरति चेन्नैवं । एकदेशवृत्तेः सर्गवृत्तित्वविरोधात् । सर्वस्यापि हि कालपदार्थस्य यः सहयो वृत्यशः स समयो न तु तदेकदेशस्य । तिर्यप्र चयस्योर्ध्वप्रख्यत्वप्रसंगाच्च । तथाहि--- प्रथममेकेन प्रदेशेन वर्तते ततोऽन्येन ततोऽप्यन्यतरेरणेति तिर्यक्प्रचयोऽप्यूर्वप्रचयीभूय प्रदेशमात्र दव्यमवस्थापयति । ततस्तियंकप्रचयस्योर्ध्वप्रचयत्वमनिच्छता प्रथममेव प्रदेशमात्र कालद्रव्यं व्यवस्थापयितव्यम् ।। १४४ ।। धान्तरभूत-द्वितीया एक० । अत्थीदो अस्तित्वात्-पंचमी एकवचन । निरुक्ति - तत्त्वात् इति तत्त्वतः सहित तमाल ।। १४४ ।। 3BRARER का प्रसाः प्राता है, इसलिये कालद्रव्य प्रदेशमात्र ही सिद्ध होता है । अतः तिर्यक्प्रचयको ऊर्ध्वअवयव न चाहने वालेको पहिले ही कालद्रव्यको प्रदेशमात्र निश्चय करना चाहिये । प्रसंगविवरण---अनन्तरपूर्व गाथामें कालद्रव्यको उत्पादव्ययध्रोव्यात्मकता बताई गई थी। अब इस गाथामें कालद्रव्यका एकप्रदेशित्व सिद्ध किया गया है । तथ्यप्रकाश-(१) उत्पादव्ययध्रौव्यको ऐक्यरूप वृत्ति ही अस्तित्व है । (२) यदि कालव्य के प्रदेश न हो तो अस्तित्व ही संभव नहीं। (३) प्रदेशके अभाव में वृत्तिमानका ही अभाव है, फिर वृत्ति तो सम्भव ही नहीं । (४) केवल वर्तनाको ही काल नहीं कहा जा सकता, क्योंकि वृत्तिमानके बिना वृत्ति हो ही नहीं सकती। (५) केवल एक एक समय परिणामतको ही काल पदार्थ नहीं माना जा सकता, क्योंकि एक एक समय परिण मन में उत्पाद व्यय प्रौव्यको एकता नहीं है । (६) किसी प्रकारका परिणमन हो उसका अपादान ब आधार ध्र व द्रव्य ही होता । (७) समय भी विनश्वर एक परिणमन है उसका अपादान व प्राधार कोई द्रव्य है उसका नाम यहां रखा गया है कालद्रव्य । (5) किसी भी परिणमनका प्राधार प्रदेशवान ही होता है सो कालद्रव्य भी प्रदेशवान है। (6) कालद्रव्य प्रदेशवान तो है, किन्त वह एक प्रदेश वाला ही है । (१०) कालको अनेकप्रदेशी कल्लित करनेपर उससे समय परिणमन निष्पन्न नहीं हो सकता । (११) एकप्रदेशमात्र कालद्रव्यको उल्लंघ कर निकटके द्वितीय कालद्रव्यपर पहुंचे हुए परमाणु से समय पर्यायको प्रसिद्धि होती है । (१२) समग्र MOS या
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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