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________________ ॐ प्रथइनसा.... सप्तदशाङ्गो टोका अथ मुतस्य पुद्गलद्रव्यस्य गुणान् गृणाति-- वण्णारसगंधफासा विज्जते पुग्गलस्स सुहुमादो । पुढवीपरियंतस्स य सहो सो पोग्गलो चित्तो॥१३२॥ सूक्ष्म व वादर पुद्गल के वर्ग स्पर्श गंध रस होते । क्षित्यादिक सब ही के, शब्द विविध पुद्गलदशायें ॥१३२॥ कर्णरसगंधस्पशा विद्यन्ते पुद्गलस्य सुक्ष्मात् । पृथिवीपर्यन्तस्य च शब्दः स पौद्गलश्चित्रः ॥ १३२ ॥ इन्द्रियग्राह्याः विल स्पर्शरसगन्धवरस्तिद्विषयत्वात्, ते चेन्द्रियग्राह्यत्वब्यक्तिशक्तिवशाल गृह्यमाणा प्रगृह्यमाणाश्च या एक द्रव्यात्मकसूक्ष्मपर्यायात्परमारणोः या अनेकद्रव्यात्मकस्थूल नामसंज-वण्णरसगंधफास पुग्गल सुहुम पुढवोपरियंत य स त पोग्गल चित ! धातुसंज--विज्ज सलार्या । प्रातिपदिक-वर्ण रसगंधस्पर्श पुदाल सूक्ष्म पुथ्वीपर्यन्त च शब्द तत् पौदगल चित्र । मूलधातु-- विद सत्तायां । उभयपदविवरण--- वरमगंधफासा वर्णरसगन्धस्पर्शा:--प्रथमा बहुवचन । विज्जते टोकार्थ...स्पर्श, रस, गंध और रर्ण इन्द्रियग्राह्य हैं क्योंकि वे इन्द्रियोंके विषय हैं और इन्द्रियग्राह्यताको व्यक्ति और शक्तिके वशसे इन्द्रियोंके द्वारा गृह्यमाण या प्रगृह्यमाण वे गुण एक द्रव्यात्मक सूक्ष्मपर्याय वाले परमारगुसे लेकर अनेकद्रव्यात्मक स्थूल पर्यायरूप पृथ्वी स्कंध तकके समस्त पुद्गलके, अविशेषतया विशेष गुणोंके रूप में होते हैं; और मूर्तपना होने के ॥ कारण ही पुद्गलके अतिरिक्त शेष द्रव्योंके न होनेसे वे गुण पुद्गलका परिचय कराते हैं । यही ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिये कि इन्द्रियग्राह्यपना होनेसे शब्द गुरण होगा; क्योंकि प्रसिद्ध किया है विविधताके द्वारा अपना नानापन जिसने ऐसे शब्दको भी अनेकद्रव्यात्मक पुदगलपर्यायके रूपमें स्वीकार किया जाता है। प्रश्न- यदि शब्दको गुण माना जाय, तो वह क्यों योग्य नहीं है ? उत्तर- (१) शब्द अमूर्त द्रव्य का गुण नहीं है, क्योंकि गुण गुणी में भिन्न प्रदेशपना होनेसे, वे गुण-गुणी एकवेदनसे वेद्य होनेसे अमूर्त द्रव्य भी श्रवणेन्द्रियका विषयभूत बन बैठेमा । (२) र्यायके लक्षणसे गुणका लक्षण उखड़ जानेसे शब्द मूर्त द्रव्यका गुण भी नहीं है । पर्यायका लक्षण अनित्यत्व है, और गुणका लक्षण नित्यत्व है; इस कारण अनित्यत्वसे नित्यत्वके उखड़ जानेसे शब्द गुण नहीं है । और जो वहाँ नित्यत्व है वह (शब्द को उत्पन्न करने बाले पुद्गलोंका और उनके स्पर्शादिक गुणों का ही है, शब्द पर्या का नहीं, इस प्रकार प्रति दृढ़तापूर्वक ग्रहण करना चाहिये। "यदि शब्द पुद्गलको पर्याय हो तो वह प्रध्वीस्कंधकी तरह स्पर्शनादिक इन्द्रियोंका विषय होना चाहिये" ऐसा भी नहीं है; क्योंकि पालकी पर्याय होनेपर भी जल घ्राणेन्द्रियका विषय नहीं है; अग्नि घ्राणेन्द्रिय तथा रस लामामाdिimepi मा
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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