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________________ प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका अथातद्भावमुदाहृत्य प्रथयति सहव्वं सच गुणो सच्चेव य पजनो त्ति वित्थारो। जो खलु तस्स अभावो सो तदभावो अतभावो ॥१०७॥ . सत् द्रव्य व सत् गुण है. सत् है पर्याय व्यक्त यह वर्णन । अन्योन्य प्रभाव हि को, तदमाव व अतद्भाब कहा ।।१०७।। सव्यं सच्च मुणः सच्चैव च पर्याय इति विस्तारः । यः खलु तस्याभावः स तदभावात दावः ।। १७.७।। यथा खल्वेकं मुक्ताफलस्रग्दाम, हार इति सूत्रमिति मुक्ताफलमिति बेधा विस्तार्यते, तथैक द्रव्यं द्रव्यमिति गुण इति पर्याय इति श्रेधा विस्तार्यते । यथा चैकस्य मुक्ताफलसरदाम्नः शुक्लो मुणः शुक्लो हार: शुक्ल सूत्रं शुक्लं मुक्ताफलमिति वेवा विस्तार्यन, तथैकस्य द्रव्यस्य सत्तागुणः सद्व्यं सद्गुणः सत्पर्याय इति त्रेधा विस्तार्यते । यथा चकस्मिन् मुक्ताफलम्सग्दामिन सामसेज.---सत् दव्य सत् च गुण सत् च एंव य पज्ज अति वित्थार जखल त अभाव त तद्भाव अतन्भाव । धातुसंज--परि इ गती, वि स्वर आच्छादने उपसर्गादर्थ परिवर्तनं । प्रातिपदिक.....मत् द्रव्य गुणः] और 'सत्गुण' [च] और [सत् एव पर्यायः] 'सत् ही पर्याय' [इति] इस प्रकार [विस्तारः] सत्तागणका विस्तार है । [यः खलु] और जो उनमें परस्पर तस्य प्रभावः] उसका अभाव' अर्थात् उसरूप होनेका अभाव है सो [सः] वह [तद्भावः] उसका प्रभाव [प्रतद्भावः] अतद्भाव है। तात्पर्य--सत्को ही द्रव्य गुरण पर्यायरूपमें समझाया जाता है वे स्वतंत्र सत् नहीं टीकार्थ- जैसे एक मोतियों की माला हार है, धागा है और पोती है इस तरह तीन प्रकारसे विस्तारित को जाती है, उसी प्रकार एक द्रव्य, द्रव्य है, गुण है और पर्याय है इस तरह तीन प्रकारसे बिस्तारित किया जाता है । और जैसे एक मोतियोंकी मालाका शुक्लत्व गुणः “शुक्ल हार", "शुक्ल धागा", और “शुक्ल मोती", यों तीन प्रकारसे विस्तारित किया जाता है, उसी प्रकार एक द्रव्यका सत्तागरण 'सत् द्रव्य', 'सत् गुण' और 'मत पर्याय यो तीन प्रकारसे विस्तारित किया जाता है । और जैसे एक मोतियोंको मालामें जो शुक्लत्व' * गुण हैं वह हार नहीं है, घागा नहीं है या मोती नहीं है, और जो हार, धागा या मोती है वह शुक्लत्व गुण नहीं है। इस प्रकार एक दूसरेमें जो 'उसका प्रभाव' अर्थात् 'तद्रूप होने का अभाव' है सो वह 'तद्-अभाव' लक्षण वाला 'अतद्भाव' है, जो कि अन्यत्वका कारण है। । इसी प्रकार एक द्रव्यमें जो सत्ता गुण है वह द्रव्य नहीं है, अन्य गुण नहीं है या पर्याय नहीं MER
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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