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________________ "Hows २०२ सहजानन्दशास्त्रमालायां यत्तु किलानाश्रित्य वति गणवदनेकगुणस मुदितं विशेष्यं विधीयमानं वृत्तिमत्स्वरूपं च द्रव्य भवति, न खलु साश्रित्य वतिनी निगुणकगुणसमुदिता विशेषणं विधायिका बृतिस्वरूपा च सत्ता भवतीति तयोस्तद्धावस्याभाव: । अत एव च सत्ताद्रव्य योः कथंचिदनन्तरत्वेऽपि सर्व कत्वं न शङ्कनीयं, तद्भावो ह्यकत्वस्य लक्षणम् । यत्तु न तद्भवद्विभाव्यते तत्कथ मेकं स्यात् । अपि तु गुणगरिणरूपेणानेकमेवेत्यर्थः ॥१०६॥ शास्यते अनेनेति शासन, (विशिष्टाई लक्ष्मी राति ददाति इति वीरः अस्य बीरस्य, अन्यस्य भावः अन्यत्वं, तस्य भावः तद्भावः न तदभाव: अतद्भावः, तद्भवतीति तदभवत् । समास-प्रविभवतं च तत् प्रदेशत्वं वेति प्रविभक्तप्रदेशत्वं ।। १०६ अब इस गाथामें उक्त तश्यको समझनेके लिये पृथक्त्व और अन्यत्वका लक्षण प्रकट किया तथ्यप्रकाश- (१) जिनमें पृथपना होता है उनके प्रदेश एक दूसरेसे भिन्न होते . हैं । (२) सत्ता और द्रव्यके भिन्न भिन्न प्रदेश नहीं हैं, क्योंकि गुण और गुरणीके पृथक् प्रदेशो.. पन नहीं होता है । (३) जो ही सत्ता गुणके प्रदेश हैं ये ही द्रव्य गुणोके प्रदेश हैं, अतः उन दोनों में प्रदेशविभाग नहीं है। (४) सत्ता और द्रव्यमें पृथापना नहीं है, तो भी लक्षारणकी दृष्टि से अन्यपना है । (५) प्रतद्भाव (कथंचित् उसरूप नहीं) होना अन्यत्वका लक्षण है। (६) सत्ता गुण है, द्रव्य गुणी है । (७) सत्ता गुणका लक्षण द्रव्य के आश्रय रहना, गुणरहित. होना, एक गुण मात्र होना, एक विशेषतारूप होना, उत्पादध्ययनोव्यकलक्षण वृत्तिरूप होना है । (4) द्रव्यका लक्षण किसीके आश्रय नहीं रहना, गुणवान होना, अनेकगुणसमुदित होना, विशेष्य (जिसकी अनेक विशेषतायें बने) होना, उत्पादश्ययनोव्यकलक्षणसत्तामय होना है। (8) लक्षणभेदसे द्रव्य और सत्तामें अतद्भाव है । (१०) सत्ता और द्रव्यमें अभिन्नता होनेपर । भी सर्वथा एकत्व नहीं, उनमें अतद्भाव है। (११) सर्वथा एकत्वका लक्षण तद्भाव है। . (१२) सत्ता और द्रव्यमें गुणगुरिणरूपसे अन्यपना है, प्रदेशभेद न होनेसे अनन्यपना है । . सिद्धान्त ---(१) सत्ता और द्रव्यमें प्रदेशभेद न होनेसे द्रव्य सस्वमय है । (२) सत्ता : और द्रव्यमें लक्षणभेद होनेसे उनमें अतद्भाव है । ... दृष्टि-१-- उत्पादव्ययसापेक्ष अशुद्ध द्रव्याथिकनय (२५) । २-- गुणगुरिणभेदक शुद्ध : सद्भूत व्यवहार (६६ ब)। प्रयोग---गुण गुणोकी भेदकल्पना छोड़कर अपनेको स्वभावमात्र अनुभवना ॥१०६॥। : अब अतद्भावको उदाहरणपूर्वक प्रसिद्ध करते हैं---[सत् द्रव्यं] 'सत् द्रव्य' [च सत् MisrudasuaaxxximuvAITHAIRamesNASALIMdindivwaters
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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