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________________ प्रवचनसार----सप्तदशाङ्गी टीका प्रथः सताध्ययोरनन्तरत्वे युक्तिमुपन्यस्यति गण हवदि जदि सद्दवं असदधुव्वं हर्वाद तं कह दव्वं । हवदि पुणो अण्णां वा तम्हा दव्वं सयं सत्ता ॥१०५।। यदि द्रव्य सत् नहीं हो फिर असत् हुमा हि द्रध्य कैसे हों। सत्त्वसे पृथक् सत् क्या, अतः स्वयं द्रव्य है सत्ता ॥१०५।। ॥ न भवति यदि सद्व्यमसद्ध्वं भवति रात्कथं द्रव्यम् । भवति पुन रन्या तस्माद्रव्यं स्वयं सत्ता ॥१०॥ यदि हि द्रव्यं स्वरूपत एवं सन्न स्यात्तदा द्वितीयो गतिः असता भवति, सत्तातः पृथग्वा । भवति । तत्रासद्धबद्धोध्यस्थासंभवादात्मानमधारयद्रव्यमेवास्तं गच्छेत् । सत्तातः पूरभवत् सत्तामन्तरेणात्मानं घारय तावन्मानप्रयोजना सत्तामेवास्तं गमयेत् । स्वरूपतस्तु सद्भबोव्य स्य संभवादात्मानं धारयद्रव्य मुद्गच्छेत् । सत्तातोऽपृथग्भूत्या चात्मानं धारयत्तावन्मात्रप्रयाजना सत्तामुद्गमयेत् । ततः स्वयमेव द्रव्यं सत्त्वेनाभ्युपगन्तव्यं, भावभाववतोरपृथक्त्वेनान्य लात् ॥१०५॥ नामसंज्ञ....ण जदि सत् दब्ध असत धुव्वत वह दव्य पूणो अण्ण वात दव सयं सत्ता । धातुसंसहव सत्तायां । प्रातिपदिक- यदि रात् द्रव्य असत् ध्रुव कथं तत् द्रव्य पुनर अन्यत् वा तत् द्रव्य स्वयं सत्ता । मलयाल-भुसतायां । उभयपदविबरण---ण न अदि यदि कहं कथं पुणो पुनः वा सयं स्वयं-अव्यय । हबदि भवति-बर्तमान अन्य पुरुष एकवचन क्रिया । सत् दश्च द्रव्य असत् धुवं ध्रुवं अण अन्यत् सत्ता-प्रथमा एकवचन । तम्हा तस्मात्-पंचमी एकवचन । निराक्ति---अस्तीति सत्, ध्रुवनं ध्रुवः, ध्रुवस्य भावः ध्रीव्यम् ।।१०५ चारता हुभा द्रव्य इतने ही मात्र प्रयोजन वाली सत्ताको सिद्ध करता है । इस कारण द्रव्य स्वयं ही सत्त्व स्वरूप है ऐसा स्वीकार करना चाहिये, क्योंकि भाव और भाववानका प्रपृथक पना होनेसे अनन्यत्व है। प्रसंगविवरण -- अनन्तरपूर्व गाथामें एकद्रव्यपर्यायद्वारसे द्रव्यके उत्पाद व्यय प्रौधों का विचार किया था। अब इस गाथामें सत्ता और द्रव्यमें अभिन्न पता है यह युक्तिपूर्वक बताया गया है। तथ्यप्रकाश--(१) द्रव्य स्वरूपसे ही सत् है । (२) यदि द्रव्य स्वरूपसे ही सन् नहो । याने असत् है तो असत्में धोव्य असंभव ही है सो द्रव्य ही प्रस्त हो गया. कुछ न रहा। । (३) यदि द्रव्य स्वरूपसे ही सत् नहीं याने सत्तासे पृथक् है तो सत्तासे अलग रहकर द्रव्य रह रहा है तो अब सत्ताको जरूरत ही नहीं रही सो सत्ता हो अग्रस्त हो गई कुछ न रहो। (४) द्रव्य स्वरूपसे ही सत् है सो द्रव्यों प्रौव्य संभव है और द्रव्य वास्तवमें द्रव्य है । SS
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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