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________________ १८२ सहजानन्द शास्त्रमालाया अथ द्रव्य व्यान्तरस्यारम्भं द्रध्यादर्थान्तरत्वं च सत्तायाः प्रतिन्ति– दव्यं सहावसिद्ध सदिति जिणा तबदो समक्खादा । सिद्ध तध आगमदो णेच्छदि जो सो हि परसमग्रो ॥६॥ स्वतःसिद्ध सत् वस्तू, ऐसा प्रभुने कहा यथार्थतया । प्रागमसिद्ध भि ऐसा, न माने जो वह वहिष्टि ।। ६८ ॥ द्रव्यं स्वभावसिद्धं सदिति जिनास्तत्त्वतः रामाख्यातवन्तः । सिद्धं तथा आगमतो नेच्छति यः स हि परसमयः ।। न खलु द्रव्य व्यान्तराणामारम्भः, सर्वद्रव्याणां स्वाभावसिद्धत्वात् । स्वभावसिद्धत्वं तु तेषामनादिनिधनत्वात् । अनादिनिधनं हि न साधनान्तरमपेक्षते । गुणपर्यायामात्मानमात्मनः स्वभावमेव मूलसाधनमुपादाय स्वयमेव सिद्धसिद्धि मद्भूतं वर्तते । यत्तु द्रव्यरारभ्यते न तद्द्रव्यान्तरं कादाचित्कत्वात् स पर्यायः, द्वयरगुकादिवन्मनुष्यादिवच्छ । द्रव्यं पुन रनवधि त्रिसमयावस्थाथि न तथा स्यात् । अथैवं यथा सिद्ध स्वभावत एव द्रव्यं तथा सदित्यपि तत्स्वभावत नामसंज्ञ-दव्व सहावसिद्ध सत् इति जिण तच्चदो समक्खाद सिद्ध तध आगमदो ॥ ज त हि परसमय । धातुसंज्ञ-वखा प्रकथने तृतीयगणी, इच्छ इच्छायां । प्रातिपदिक---द्रव्य स्वभावसिद्ध सत् इति जिन तत्वतः समाख्यात बत् सिद्ध तथा आगमत: न यत् तत् हि परसमय । मूलधातु...ख्या प्रकथने अदादि, स्वभाव मूल साधनको उपादान करके स्वयमेव सिद्ध हुग्रा वर्तता है । जो द्रव्योंसे उत्पन्न होता है वह तो द्रव्यान्तर नहीं है, किन्तु कादाचिरकताके कारण पर्याय है; जैसे द्वयणुक इत्यादि तथा मनुष्य इत्यादि । द्रव्य तो अनवधि त्रिकालस्थायी होनेसे उत्पन्न नहीं होता। अब इस प्रकार जैसे द्रव्य स्वभाव से ही सिद्ध हैं उसी प्रकार द्रव्य 'सत् है। यह भी स्वभावसे ही सिद्ध है, ऐसा अवधारण कीजिये । कहीं क्योंकि द्रव्य सत्तात्मक अपने स्वभावसे निष्पन्न निष्पत्तिमान भाव वाला है । द्रव्यसै अर्थान्तरभूत सत्ता नहीं बन सकती कि जिसके समयायसे वह द्रव्य 'सत्' हो । देखिये प्रथम तो सत्का व सत्ताका युतसिद्धपना होने के कारण अर्थान्तरत्व नहीं है, क्योंकि दण्ड और दण्डीकी तरह सत् और सत्तामें युतसिद्धता दिखाई नहीं देतो 1 अयुतसिद्धपना होने से भी सत् प्रौर सत्तामें भी अर्थान्तरत्व नहीं बनता । प्रश्न-- 'इसमें यह है अर्थात् द्रव्य में सत्ता है' ऐसी प्रतीति होती है इस कारण अर्थान्तरत्व बन सकता है । उत्तर--'इसमें यह है। ऐसी प्रतीति किसके कारणसे होती है ? यदि ऐसा कहा जाय कि भेदके कारणसे अर्थात द्रव्य और सत्तामें भेद होनेसे होती है तो, वह कौनसा भेद है ? प्रादेशिक या अताद्धाविक ? प्रादेशिक तो है नहीं, क्योंकि युतसिद्धत्व का पहले ही निराकरण कर दिया गया है, और यदि प्रताद्भाविक कहा जाय तो वह ठीक ही है, क्योंकि ऐसा वचन है कि 'जो द्रव्य है वह गुण NEE
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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