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________________ १७७ प्रवचनसार-सप्तदशाङ्गी टीका भावेत वा द्रव्यात्पृथगनुपलभ्यमानी कर्तृकरणाधिकरणरूपेण गुणानां पर्यायारणां च स्वरूपमुपाक्षाय प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तस्य द्रव्यास्तित्वेन निष्पादितनिष्पत्तियुक्तगुणैः पर्यायश्च यदस्तित्वं द्रव्यस्य स स्वभावः । यथा वा द्रव्येश वा क्षेत्रेण वा कालेन वा भावेन वा पीततादिगुणेभ्यः । कुण्डलादिपर्यायेभ्यश्च पृथगनुपलभ्यमानस्य कर्तृकरणाधिकरणरूपेण कार्तस्वरस्वरूपमुपादाय प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तः पीततादिगुणैः कुण्डलादिपर्यायश्च निष्पादितनिष्पत्तियुक्तस्य कार्तस्वरस्य मूलसाधनतया तनिष्पादितं यदस्तित्वं स स्वभावः, तथा द्रव्येण वा क्षेत्रेण वा कालेन वा भावेन वा गुणेभ्यः पर्यायेभ्यश्च पृथगनुपलभ्यमानस्य कर्तृ करणाधिकरणरूपेण द्रव्यस्वरूपमुपादाय प्रवर्तमानप्रवृत्तियुक्तैर्गुणः पर्याय न निष्पादितनिष्पत्तियुक्तस्य द्रव्यस्य मूलसाधनतया तनिष्पा. दितं यदस्तित्वं स स्वभावः। किंच-यथा हि द्रव्येण वा क्षेत्रेण वा कालेन वा भावेन वा कार्तस्वरात्पृथगनुपलभ्यमानः कर्तृ करणाधिकरण रूपेरण कृण्टलाङ्गदपीततात्धुपादव्ययध्रौव्याणां व्ययध्रुवत्व । मूलधातु---उत् पद गती, वि इण् गती, ध्रु सधैर्य भ्वादि । उभयपदविवरण--सम्भावो सद्भावः सहावो स्वभाव:-प्रथमा एकः । गुणेहि गुणैः सगपज्जये हि स्वकार्यय: उप्पादक्ष्ययधुवत्तेहि उत्पादसुवर्णके अस्तित्वसे निष्पादित उत्पत्तिसे युक्त पीतत्वादि गुणों और कुण्डलादि पर्यायोंसे जो सुवर्णका अस्तित्व है वह उसका स्वभाव है । इसी प्रकार द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे या भादसे । जो द्रव्यसे पृथक् न पाये जाने वाले कर्ता-करण अधिकरणरूपसे गुणोंके और पर्यायोंके स्वरूप को धारण करके प्रवर्तमान द्रव्य के अस्तित्वसे निष्पादित उत्पत्तिसे युक्त गुणों और पर्यायोंसे जो द्रव्यका अस्तित्व हैं वह द्रव्यका स्वभाव है । अथवा जैसे द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे व भावसे पीतत्वादि गुणोंसे और कुण्डलादि पर्यायोंसे पृथक् न पाये जाने वाले तथा कर्ता करण-अधि। करणरूपसे सुवर्णके स्वरूपको धारण करके प्रवर्तमान पीतत्वादि गुणों और कुण्डलादि पर्यायों से निष्पादित निष्पत्तिसे युक्त सुवर्णका, मूलसाधन पनेसे उन गुहा पर्यायोंसे निष्पन्न होता हुआ जो अस्तित्व है वह उसका स्वभाव है; इसी प्रकार द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे या भावसे गुरगोंसे और पर्यायोंसे पृथक न पाये जाने वाले तथा कर्ता-करण अधिकरणरूपसे द्रव्यके स्वरूपको धारण करके प्रवर्तमान गुणों और पर्यायोंसे निष्पादित निष्पत्तिसे युक्त द्रव्यका, मूलसाधनपनेसे उन गुण पर्यायोंसे निष्पन्न होता हुआ जो अस्तित्व है वह स्वभाव है। और क्या---जैसे द्रव्यसे, क्षेत्रसे, कालसे या भावसे सुवर्णसे पृथक् न पाये जाने वाले तथा कर्ता-करण-अधिकरणरूपसे कुण्डलादि उत्पादोंके, बाजुबन्धादि व्ययोंके और पोतत्वादि प्रीव्योंके स्वरूपको धारण करके प्रवर्तमान सुवर्णके अस्तित्व से निष्पादित निष्पत्तिसे युक्त ऐसे कुण्डलादि उत्पाद, बाजूबंधादि व्यय और पोतत्वादि ध्रौव्योंसे जो सुवर्णका अस्तित्व है वह woma ntitiementikhil motiVARAVBHARASHTRA Sywwwmiti o n SARRER Disa SRCH SurusaRAINS
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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