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________________ १४८ सहजानन्दशास्त्रमाला अथानिष्टकार्यकारणत्वमभिधाय त्रिभूमिकस्यापि मोहस्य क्षयमासूत्रयति-मोहेण व रागेण व दोसेण व परिणदस्स जीवस्स । जायद विविहो वंधो तम्हा ते संखवइदव्वा ॥ ८४॥ मोह राग द्वेष हि से, परिरणत जीवोंके बन्ध हो जाता । इससे विभावरिका मुमुक्षु निर्मूल नाश करे ॥ ८४ ॥ मोहेन वा रागेण वा द्वेषेण वा परिणतस्य जीवस्य जायते विविधो बन्धस्तस्मात्ते संक्षपतिव्याः ||२४|| एवमस्य तत्त्वाप्रतिपत्तिनिमीलितस्य मोहेन वा रागेण वा द्वेषेण वा परिणतस्य तृणपटलावच्छन्नगर्त संगतस्य करेणुकुट्टनीमा त्रासक्तस्य प्रतिद्विरददर्शनोद्धतप्रविधावितस्य च सिन्धु नामसंन्त्र मोह व राग व दोस व परिषद जीव विहितं तत संवदन । धातुसंज्ञ-जा प्रादुभवि सं खवक्षयकरणे । प्रातिपदिक मोह वा राग वा द्वेष वा परिणत जीव विदिवचत्य तत् तत् संक्षसमझता । ( ४ ) पोही जीव परपर्यायोंको स्वर्यायरूपसे समझता है । ( ५ ) मोही जीव इन्द्रियोंको रुचिके वश होकर अच्छे बुरे न होकर भी ज्ञेय पदार्थोंके इष्ट और श्रनिष्ट ऐसे दो भाग कर डालता है । (६) मोही जीव इष्ट ( रुचित) विषयोंमें राग करके व अनिष्ट (प्ररुचित) विषयोंमें द्वेष करके अत्यन्त क्षुब्ध व्याकुल रहता है । (७) परभावविमूढ़ता ( मोह) की तीन भूमिकायें हैं--- मोह, राग व द्वेष । (८) मोहको तीनों भूमिकायें मूलतः विनष्ट होनेपर हो कैवल्यका लाभ होता है । सिद्धान्त - ( १ ) मोहनीय कर्मविपाक के सान्निध्य में जीव विकाररूप परिणमता है । दृष्टि - १ - उपाधिसापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय ( २४ ) | प्रयोग - कैवल्यलाभके लिये केवल ज्ञानमात्र अन्तस्तस्वकी माराधना करके विकारसे हटकर स्वभाव में मग्न होना ॥५३॥ अब तीनों प्रकारके मोहकी अनिष्टकार्यकारणता कहकर तीनों ही भूमिका वाले मोह का क्षय सूत्र द्वारा कहते है-- [ मोहेन वा ] मोहरूपसे [ रागेल वा ] रागरूपसे [द्वषेण वा ] थवा द्वेषरूप से [ परिणतस्य जीवस्य ] परिणमित जोवके [ विविधः बंध: ] नाना प्रकारका बंध [जायते] होता है; [तस्मात् ] इस कारण [ते] वे अर्थात् मोह, राग, द्वेष [ संक्षपति] सम्पूर्णतया क्षय करने योग्य हैं । तात्पर्य --बन्धनके बीज मोह राग द्वेष ही हैं, अतः इन तीनोंको निर्मूल नष्ट करना चाहिये । टोकार्थ - इस प्रकार वस्तुस्वरूप के अज्ञान से रुके हुये, मोहरूप, रागरूप या द्वेषरूप
SR No.090384
Book TitlePravachansara Saptadashangi Tika
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages528
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size22 MB
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