________________
प्रवचन -
सारोद्वारे
सटीके
॥ १॥
- * प्रकाशकीय निवेदन *
संपूर्ण एक युग (५ वर्ष) की दीर्घ तपश्चर्या के फलस्वरूप " प्रवचनसारोद्धार" पत्थरत्न का मुद्रण कार्य समाप्ति का शिखरारोहण कर रहा है यह मान कर विद्वानों का वन्द हर्ष का अनुभव करेगा इसमें कोई संदेह नहीं है ।
arrantar afte सम्राट् कर्म साहित्य निष्णात स्व. प. पू. प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय प्रेमसुरीश्वरजी महाराज के मंगल सानिध्य में हमारी संस्था का श्रीगणेश हुआ । तदनन्तर कई मूल्यवान एवं भारतीय प्राचीन साहित्य के जाज्वल्यमान ग्रन्थरत्नों के प्रकाशनों का हमें अमूल्य लाभ प्राप्त हुआ। दिन-प्रतिदिन हमारी संस्था प्रकाशन के क्षेत्र में ठोस कदम बढा रही है इस का परम श्रेय न्यायविशारद उपविहारी प. पू. प्राचार्यदेव श्रीमद् विजय भुवनमानुसूरीश्वरजी म.सा. एवं उनके शिष्याग्रणी भागम-प्रकरण रहस्यविद् प. पू. पं श्री जयघोष विजय गणिवर प्रादि शिष्य समुदाय की है। उनके मूल्य मार्गदर्शन से हमें प्रकाशन कार्यों में अनेकविध सहायता प्राप्त होती रही है ।
'प्रवचन सारोद्धार' टोकासहित प्रभ्थ वे ला पु. फंड की ओर से चिरपूर्व प्रकाशित था जो कालकता से जर्जर एव दुर्लभ बन चुका था। प. पू. श्रुतोद्वारप्रेमी मुनिराज श्री पद्यसेनविजय महाराज एवं मुनिराज श्रीमुनिन्द्र विजय महाराज ने नये सिरे से उसका संपादन कार्य हाथ में लिया। प. पू. मुनिराज श्री मुनिषद्रforest ने प्रनेक हस्ततों में से पाठांतरादि के संचय का महत्वपूर्ण परिश्रम किया। इन दोनों मुनियों के उदार सहकार से प्राज नयो साजसज्जा के साथ प्रवचन सारोद्वार का दूसरा विभाग पूर्णता को प्राप्त कर चुका है
प्रकाशकीय निवेदन
॥१॥