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________________ प्रवचनसारोद्धारे !! ९४॥ NRELEMANC नाणाइलिगं मोत्तु कारणमिहलोयसाहयं होइ । पूयागारवहेऊ नाणग्गहणे वि एमेव ॥१६॥ हाई परस्स दिहिं वंदंते तेणियं हवइ एयं । तणोविव अप्पाणं गृहह ओभावणा मा मे ॥१६॥ आहारस्स उ काले नीहारस्सावि होइ पडिणीयं । रोसेण धमधमतो जं चंदा स्टुमेयं तु ॥१५॥ नवि कुप्पसि न पसीयसि कहसियो चेव नज्जियं एयं । सोसंगुलिमाईहि य तज्जेइ गुरु पणिवयंतो ॥१६॥ चीसंभट्ठाणमिणं सम्भावजढे सह भवइ एयं । कवडंति कइयवंति य सढयावि यहुति एगट्ठा ॥१७॥ गणिवायगजिट्टजत्ति होलिकिंतुमे पणमिऊण। दरवंदियंमिवि कहं करेइ पलिजंचियं एयं ॥१६॥ अंतरिओ तमसे वा न बंदई वंदइ उदीसंतो। एयं दिमदिलु सिंगं पुण मुद्धपासेहिं ॥१९॥ करमिव मन्नइ दितो वंदणयं आरहंतियकरोत्ति । लोइयकराउ मुक्का न मुच्चिमो वंदणकरस्स ॥१७॥ H Hinition
SR No.090382
Book TitlePravachansaroddhar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandrasuri
PublisherBharatiya Prachyatattva Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages678
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Sermon
File Size21 MB
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