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________________ १ मास शेष रहने पर देशना बन्द कर आप श्री सम्मेद शैल की दसघवल कुट पर प्रा विराजे । कुबेर ने भी समवशरण विघटित कर दिया। १००० मुनियों के साथ प्रतिमा योग धारण किया । तीसरे शुक्ल ध्यान "सुक्ष्म क्रिया निवृत्ति का प्राश्रय ले शेष अधातिया कर्मों का नाश करने लगे । अन्त में चैत्र शुक्ला षष्ठी के दिन जन्म नक्षत्र मृगसिर में सूर्यास्त समय चतुर्थ व्यूपरत क्रियानिवृत्ति ध्यान का भी उलंघन कर पंच हस्व स्वर उच्चारण काल मात्र रह कर अष्ट भू-पर एक समय मात्र में जा विराजे अर्थात् अनन्त यात्म गुरणों का प्रकाश कर अक्षय अविनाशी मुक्तिधाम को सिधारे । मोक्ष कल्याणक पाँचवें ज्ञान के स्वामी, पाँचवीं गति को प्राप्त, पांचचे कल्यारण--- मोक्ष कल्यागाक मनाने पाये देव, सुरेन्द्र और असंख्य देवियों ने परमोत्सव किया। दीप जलाये, मोदक चढ़ाया, अग्निकुमार देवों ने अपने मुकूट में जड़ित रत्नों की कान्ति से अग्नि प्रज्वलित कर अन्तिम संस्कार किया । सबों ने भस्म मस्तक पर चढ़ायी । अपने को धन्य माना । छठ से १४३ गुरण स्थान के स्वामी अनुक्रम से इनका उल्लंघन कर सिद्धावस्था को प्राप्त, भगवान संभवनाथ जीव मात्र का कल्याण करें । कायोत्सर्ग प्रासन से मुक्त हुए। विशेष सातव्य विषय..... १७०१०० (एक लास्त्र सत्तर हजार एक सौ) मुनि प्रभु से पहले ही मोक्ष गये । ६६०७ सौधर्मादि ऊध्र्व ग्रेवेयक पर्यन्त गये । २०००० अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए । १००० सह मुक्त हुए अर्थात् भगवान के साथ मोच गये । ८४ अनुवद्ध हए, दुसरे प्राचार्यों के मतानुसार १०० हए । अजितनाथ से इनका मोक्ष गमन अन्तराल काल १० लाख करोड़ सागर प्रमाण हैं । शम-शान्ति के प्रतीक भगवान हमें भी कषायों का निग्रह कर शान्तिमय बनने की क्षमता प्रदान करें । अर्थात निमित्त हो । चिह्न घोड़ा R2xG
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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