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________________ रत्न, पुष्प, गंधोदक वृष्टि, दुंदुभि बाजे और जय-जयनाद देवों द्वारा हुए प्रभु तपोवन को पधारे। प्रखण्ड मौन से बारह वर्ष पर्यन्त घोर तपश्चरण कर स्य काल बिताया । चतुर्विध धर्म ध्यान की पूर्ति कर शुक्ल ध्यान में स्थित हुए । केवलज्ञान कल्यानक "yera fचन्ता निरोधो घ्यानं" के अनुसार भगवान सम्पूर्ण संकल्पविकल्पों का पूर्ण परित्याग कर निजात्म स्वरूप में तल्लीन हुए । सातिशय श्रप्रमत्त से ऊपर चढ़ने के लिए 'पृथक्त्ववितर्क' शुल्ल ध्यान का आलम्बन लिया । अर्थात् क्षपक श्रेणी मांड कर ध्यानानल से मोहनीय कर्म को मूल भस्म कर ज्ञानावरणी, दर्शनावरणी और अन्तराम को भी "एकत्व वितर्क" शुक्ल ध्यान रूपी खडग से एक साथ धराशायी कर दिया | मुहूर्त मात्र काल में ६३ प्रकृतियों का समूल प्रभाव कर केवलज्ञान प्राप्त कर सर्वज्ञता प्राप्त की । पौष शुक्ल एकादशी के दिन सायंकाल रोहणी नक्षत्र में तीनलोक के चराचर पदार्थों की उनकी अनन्त पर्यायों के साथ युगपत् जानने वाले अक्षय अनन्त ज्ञान के घारी हुए । www प्रभु को सर्वज्ञता प्राप्त होते ही इन्द्रासन डगमगाया और अपने अवविज्ञान से भगवान को सर्वज्ञता हुयी जानकर स-विभूति इन्द्रराजं मत्र्यलोक में प्रा पहुँचा । नियोगानुसार कुवेर ने इन्द्र की प्राज्ञा से विशाल सप्तकोट युक्त, त्रिमेखला युक्त समवशरण मण्डप की रचना आकाश में को। यह भूमि से ५००० धनुष ऊपर और २०००० सीढ़ियों से सहित महा-मनोहर एवं सुखद था । इसका विस्तार ११ || योजन प्रमाण अर्थात् ४६ कोश था । क्रमशः १. चैत्यभूमि, २. खातिका, ३. लता भूमि, ४. उपवन भूमि, ५. ब्वजा भूमि, ६. कल्पांग भूमि, ७. गृह भूमि, ८. सद्गण भूमि तथा ६, १०, ११. ये तीन पीठिका भूमि इस प्रकार ११ भूमियों से युक्त था । ( ० ० पु० ) अन्तिम कटनी के मध्य सुवर्णमय सिंहासन पर अन्तरिक्ष विराजमान भगवान की इन्द्र ने अतिशय वैभव के साथ अष्ट प्रकारी पूजा की । १ हजार आठ नामों से स्तवन किया एवं पवित्र भाव से नमस्कार कर सातिमय पुण्यार्जन कर ज्ञान कल्याणक महोत्सव मनाया। तत्पश्चात् राजा, महाराजा, मंडलेश्वर आदि नर-नारियों ने यथाशक्ति यथाभक्ति भगवान की सर्वज्ञता की पूजा की ET
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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