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________________ योगनिरोध- आयुष्य के १४ दिन शेष रहने पर दिव्यध्वनि बन्द हो गई । भगवान पूर्ण योग निरोध कर ध्यानस्थ हो गये । निर्धारण स्थान - श्री कैलाश पर्वत से मुक्तिधाम सिधारे । समय - मुक्ति प्रयाण काल अपराह्न काल था । प्रासन ... पद्मासन | सहमुक्ति पाने वाले - १०,००० मुनि थे । मुक्ति तिथि माघ कृष्ण चतुर्दशी के दिन सूर्योदय के शुभ मुहूर्त और अभिजित नक्षत्र में, पूर्वाभिमुख पर्यकासन से अ, इ, उ, ऋ, लृ, इन ह्रस्व स्वर के उच्चारण करने के काल मात्र १४वें गुरण स्थान में ठहर मुक्ति लाभ किया । एक समय मात्र में सिद्धशिला पर जा विराजे । wwwwwww मोकल्याक 7 आयु, नाम, गोत्र और वेदनीय इन चारों कर्मों का भी उच्छेद हो गया, नो कर्म भी आमूल नष्ट करने से भगवान सिद्ध प्रभु के १. सम्यक्त्व, २. अनन्त ज्ञान, ३. अनन्त दर्शन ४. अनन्त वीर्य, ५. अन्याबाध सुख, ६. सूक्ष्मत्व, ७. अगुरु लघुत्व और श्रव्यावाघत्व ये ग्राठ गुण पूर्ण प्रकट हो गये । शुद्ध, निरंजन, चैतन्य श्रात्मा तनुवातवलय में जा विराजी । जिस प्रकार स्विच दबाते ही घंटी बजने लगती है । उसी प्रकार भगवान के मोक्ष जाने का समाचार भी तत्क्षण स्वर्ग लोक के कोने-कोने में गूंज उठा। सिंहासन कंपिल होते ही सुरेन्द्र ने अवधि से जान कर मोक्ष कल्याणक महामहोत्सव मनाने की तैयारी की । ससैन्य श्री कैलाणगिरी पर श्रा पहुँचा । नाना प्रकार के सुगंधित अगर, तगर, कपूर, चन्दन, उशीर, केशर, छारछवीला आदि दिव्य पदार्थों को संग्रह कर प्रभु के दिव्य शरीर का संस्कार किया। उस समय अग्निकुमार जाति के देवों के मुकुटों से अग्नि उत्पन्न हुयी । दीप, धूपगंधादि से अग्नि कुण्ड की पूजा की । इन्द्र ने भगवान के शरीर को परम पवित्र भस्म को प्रत्यन्त भक्ति से मस्तक पर चढ़ाया और रत्न करण्ड में रखकर स्वर्ग को ले गया । अन्य समस्त चतुर्निकाय देवों ने भी भस्म मस्तक पर धारण की एवं पूजा की। भस्म को गले, ૧૭
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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