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________________ में पहुँच कर भगवान को अत्यन्त भक्ति एवं विनय से सपरिवार पूजा,. नमस्कार, स्तवन,कर मनुष्यों के कोठे में यथास्थान बैठ गये । धर्मोपदेश सुनकर बोले हे भगवन ! प्राज पिछली रात्रि में मैंने १. सिंह, २. सिंह का बच्चा, ३, हाथी का बोझ लादे घोड़ा, ४. सूखे पत्ते खाते बकरे, ५. हाथी सवार वानर, ६. अनेक पक्षियों से पीडित उल्ल, ७. भूतों का नत्य, चारों ओर सुखा किन्तु मध्य में पानी भरा तालाव, ६, चूल से मलिन रत्न राशि, १०. नैवेद्य खाता कुत्ता (सोने के थाल में), ११. तरुण बैल, १२, परिवेश सहित चन्द्रमा, १३. लड़ते हुए दो बैल, १४. मेघों से ढका सूर्य, १५. छाया रहित सूखा वृक्ष एवं १६. पुराने वृक्षों का समूह स्वप्न में देते हैं । हे देव इनका फल क्या होगा ? मैं सुनना चाहता हूँ। __.. उत्तर में वचनामृत से सभा को सिंचित करते हुए प्रभु बोले, हे नरोत्तम, तुमने साधुओं के समान इन द्विजों की पूजा की है यह बहुत अच्छा है । परन्तु इसमें कुछ दोष भी है। अब तक चतुर्थ काल है ये अपनी मान-मर्यादा के अनुसार उत्तम चारित्र. धारण कर कर्तव्यनिष्ठ रहेंगे, परन्तु कलिपुग-पञ्चम काल के आने के समय अहंकारी होकर सदाचार से प्रष्ट हुए मोक्षमार्ग के- जैन धर्म के कदार विरोधी हो जायेंगे । "हम सबसे बड़े हैं" इस मिथ्याभिमान से सम्यक्स्थ रत्न' को छोड़कर मिथ्यात्व का सेवन करेंगे। धर्म के शत्रु हो जायेंगे । अहिंसा धर्म का त्याग कर हिंसा रूप कुधर्म का प्रचार और प्रसार करेंगे। यह तो ब्राह्मण रचना के विषय में है। इसी प्रकार स्वानों का फल भी १. महावीर भगवान के शासन में मिथ्या नयों और शास्त्रों की उत्पत्ति, २. कुलिंगी भेषधारी अधिक होंगे, ३. साधु कठिन तप नहीं करेंगे, ४. उच्चकुल वाले शुभाचार का त्याग करेंगे, ५. क्षत्रियों का राज्य नहीं होगा, ६. घमात्माओं का अपमान होगा, ७, कुदेवों की पूजा होगी, ८. उत्तम तीर्थों में धर्म का प्रभाव और हीन तीर्थों में सद्भाव होगा, ६. शुक्ल ध्यान का प्रभाव, १०, कुपात्रों का आदर, सत्पात्रों का अपमान, ११. तरुण और तरुणी दीक्षा लेंगे, १२. अवधि, मन:पर्यय ज्ञानी नहीं होंगे प्रायः, १३. संघ में न रहकर एकलविहारी मुनि होंगे, १४. केवलज्ञान का प्रभाव, १५. प्राय: दृश्शीली स्त्री पुरुष होंगे, १६. औषधियां नीरस होंगी । इस प्रकार ये फल प्रागे पंचम काल में होंगे।
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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