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चार मानस्थम्भ शोभित हो रहे थे। इस मानस्थम्भों को घेर कर तीन कोट थे । प्रत्येक कोट में चारों दिशाओं में चार-चार दरवाजे थे। तीनों कोठों के भीतर एक पीठिका थी. वह अरहंत देव के अभिषेक के जल से पवित्र थी। उस पर चढ़ने को सुवर्ण की १६ सीढ़ियां बनी थीं। इन पीठिका पर मामस्थम्भ थे। जिनके दर्शन मात्र से मिध्यादृष्टियों का अभिमान शीघ्र नष्ट हो जाता था। ये सुवर्ण के थे। इन्हें इन्द्रध्वज भी कहते हैं इनके नजदीक निर्मल जल से भरी बावड़ियाँ थीं। उनमें लाल, सफेद, नीले कमल खिले थे । ये १६ श्रीं । प्रत्येक दिशा में चार-चार थीं । इनके किनारों पर पादप्रक्षालन को दो-दो कुण्ड बने थे । इससे कुछ दूर जाने पर जाने का मार्ग छोड़कर जल से परिपूर्ण खाई थी। इसमें मीने किलोल कर रहीं थी । इसके बाद लता वन था जिसमें ऋतुओं के पुष्प खिल रहे थे। इससे कुछ दूर आगे जाकर एक सुवर्ण कोट था जो समवसरण का प्रथम कोट कहलाता है । रंग-बिरंगे लाल, मोती, मरियों से जड़ित था और इन्द्र धनुष की शोभा धारण करता था । वर्षाकाल का दृश्य उपस्थित करने वाले इस कोट के चारों दिशाओंों में १-१ विशाल द्वार था । प्रत्येक द्वार पर देवगण, गान, नृत्यादि कर रहे थे एवं १०८ मंगल द्रव्य भी सोभित थे । मशियों के १०० तोरा बंधे थे । संख, पद्यादि नवनिधियों रक्खी थीं । प्रत्येक द्वार के पास तीन मंजिल की २-२ नाट्यशालाएँ थीं। इनकी शोभा प्रद्भुत थी । प्रत्येक नाट्यशाला में दो-दो धूप घट थे । इनसे कुछ आगे मार्ग रूपबगल में चार वन थे । प्रथम अशोक वृक्षों से, दूसरा सप्तपर्ण वृक्षों से, तीसरा चम्पक वृक्षों से और चौथा आम के वृक्षों से भरे थे । यत्र-तत्र तालाब, बावड़ियाँ आदि बनी थीं । नाना प्रकार के पुष्पों से सज्जित थे । प्रत्येक वन में अपने नामानुसार अर्थात् अशोक, सप्तपर्ण, चम्पक और आम्र नाम के बहुत ऊँचे चार चैत्य वृक्ष थे। उनके मूल भाग में जिन प्रतिमा विराजमान थी । ये पृथ्वीकाय अर्थात् मरिण निर्मित थे । इनको घेरकर वन वेदिका थी । इस पर ध्वजाएँ फहरा रही थी । चैत्य वृक्ष, वेदी कोट, खाई, सिद्धार्थ वृक्ष, स्तूप, तोरणयुत मान स्थम्भ और ध्वजों के खम्भ इन सबकी ऊंचाई तीर्थङ्करों के शरीर की ऊँचाई से बारह गुनी होती है । चौड़ाई श्रौर मोटाई भी इतनी ही होती है । ध्वजाश्रों में, माला, वस्त्र, मयूर, कमल, हंस, गरुड़, सिंह, बैल, हाथों और चक्र के चिह्न होते हैं । प्रत्येक दिशा में एक-एक चिह्न की १०८ ध्वजाएँ अर्थात् सब १०८० थीं ।
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