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असम्भव है । संसार पूर्वक ही मुक्ति है । अस्तु, गृहस्थ जीवन में प्रविष्ट हो लोक को सम्मार्ग पर ग्रारुड करें | संसार मार्ग चलावें । उभय धर्म की परम्परा के अधिनायक बनें। संसार आपका अनुकरण करने को लालायित है। आप किसी इष्ट कन्या से विवाह कर लोक पद्धति चलायें प्रजासंतति से ही धर्म संतति भी अविच्छिन्न रूप से चलती रहेगी। धीर-वीर नाभिराय के युक्तियुक्त वचनों को ध्यान से सुना और स्मित मानन से शब्द उच्चारण कर अपनी स्वीकृति प्रदान की ।
प्रभु का विवाह -
आशाओं का तांता पूरा नहीं होता । जब कभी कोई ग्राशा पूर्ण हो जाती है तो मन बांसों उछलता है ग्रानन्द से, और निराशा हुयी तो पंगु-सा बैठ जाता है निकम्मा-सा माता मरु देवी के हर्ष का क्या कहना ? असीम आनन्द से नाच उठी महाराज नाभिराय के पुत्र विवाह की वार्ता सुनकर |
मुख
से
महाराज ने इन्द्र की सम्मति से उच्चकुलोत्पन्न कच्छ महाकच्छ की परम सुन्दरी युवती, कलागुण सम्पन्न योग्य यशस्वती और सुनन्दा के साथ वृषभदेव का पाणिग्रहण करना निश्चित किया था । विशाल मण्डप तैयार हुआ । जहाँ स्वयं इन्द्र सपरिवार कार्य करे वहाँ के साजसज्जा का क्या कहना ? सुवर्ण मालाएं, तोरण, बन्दनवार, मोतियों की झालर, स्फटिक के खम्भे एवं मध्य में रत्न जडित वेदी तैयार की। नर-नारियों के साथ देव-देवांगनाएँ भी परमं श्रानन्द से नृत्य, गीत, वादित्र, नेक वार में संलग्न थे । जैसे प्रत्युसम वर वैसी ही प्रनिद्य सुन्दर कन्याएँ थीं । सर्वाङ्ग सुन्दर वर-वधू की छवि देखते ही बनती थी । स्वयं वृहस्पति ने इन्द्र की आज्ञानुसार विवाह विधि-विधान सम्पन्न किया । कर्मभूमि की रचना यहीं से चलनी है । श्रतः युक्तियुक्त आगम पद्धति, प्राविधि से प्रत्येक क्रिया-कलाप कराया गया था । जो वर-वधू को देखता यही कहता "इन्होंने पूर्वभव में प्रवश्य ही कठोर व्रतोपवास रूप तप किया है ।" स्वाभाविक रूपराणि विविध अलंकारों से विशेषश्रद्भुत हो उठी थी । सघन बादलों के बीच विद्युत सौ नत्र वधुएँ और here बाल रवि से प्रभु सुशोभित हो रहे थे । श्रनेकों वाद्य एक साथ बज उठे 1 मंगल पाठों से मण्डप गूंज उठा। स्वास्तिक वचनों से चारों ओर गूंज मच गई। हवन घुंग्रा आकाश में जाकर बिखर गया। [ २५