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अवधिज्ञानी और ४०० वादी थे। सब १४००० मुनिराज थे। चन्दना अजिका मुख्य थीं इनके साथ ३६००० मार्यिकाएँ थीं। श्रेणिक राजा मुख्य श्रोता थे-१ लाख श्रावक और ३००००० (तीन लाख) धाविकाएँ थीं। मातंग यक्ष और सिद्धायनी पक्षी थी। भगवान ने सबको नय, प्रमाण, निक्षेपों द्वारा वस्तु स्वरूप समझाया ।
इन्द्र ने सहस्र और आठ नामों से स्तुति की और अन्य पार्य देशों में विहार कर धर्मामृत वर्षण की प्रार्थना की। श्री वीर प्रभु ने सप्तभंग रूपी वाणी से अनेकान्त सिद्धान्त के बल से श्रेणिक जैसे कट्टर बौद्ध राजा को जैन बनाया, पशूयज्ञ, नरमेघ यश, आदि को अहिंसा सिद्धान्त से निर्नाम किया । धार्मिक माभिक स्यावाद वाणी द्वारा बौद्ध, नैयायिक, सांख्य आदि मत-मतान्तरों की असारता का प्रकाशन कर सारभूत धर्म का प्रदिपादन किया ।
श्रेणिक महाराज ने क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न किया। तीर्थकर गोत्रबन्ध किया। प्रागामी उत्सपिणी काल में प्रथम पद्यनामि नाम के तीर्थकर होगे। ____ भगवान महावीर का विहार बिहार प्रान्त में अधिक हुमा । राजगृही के विपुलाचल पर कई बार समवशरण आया । इस प्रकार बिहार करते जब श्रायु के.२ दिन रह गये तब पावापुर के पग सरोबर के तट पधवन के मध्य प्रा विराजे ।
मोक्ष कल्याणक--
दो दिन योग निरोध. कर प्रतिमा योग धारण किया। कार्तिक कृष्णा अमावश्या के दिन प्रातः व्युपरतक्रिया निवृत्ति शुक्ल ध्यान के प्रभाव से समस्त अधालिया कर्मों का नाश कर स्वाति नक्षत्र में पावापुर पद्म सरोवर से अनन्त काल स्थायी मुक्ति प्राप्त की।
भगवान महावीर जिस समय मोक्ष पधारे उस समय चतुर्थ काल के ३ वर्ष ८ माह और १५ दिन बाकी थे । ये बाल ब्रह्मचारी थे। आज इन्हें मोक्ष गये २५१२ वर्ष हो गये । प्रभी इन्हीं का शासन है।
इनका गर्भकाल ६ महीना ८ दिन, कुमार काल २५ वर्ष ७ माह, १२. दिन, छनस्थ काल १२ वर्ष ५ माह १५ दिन केवलि काल २६ वर्ष
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