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पारणा-माहार
अखण्ड मौन से तीन दिन के उपवास के बाद प्रभु जी चर्या मार्ग से 'कुलग्राम' नामक नगरी में पहुंचे। वहाँ राजा 'कूल' ने बड़ी भक्ति से पड़माहन किया । तीन प्रदक्षिणाएं दी। उस समय इन्द्र धनुष का भ्रम होता था क्योंकि वीतराग प्रभु की शरीर कान्ति सुवर्ण धणे, राजा का प्रियंगु फूल समान लाल, उसके (राजा) वस्त्र शुभ्र, मुकुट अनेक मणियों से जटित नाना प्राभरणों सूत उसकी महादेवी थी। चरणों में नमस्कार किया । "आज मुझे महानिधि प्राप्त हयो" इस प्रकार मानकर नवधा भक्ति से, अति प्रासुक, उतम परमान-क्षीर का आहार दिया । इससे उसके पञ्चाश्चर्य हुए ।
परमपुरुष भगवान महावीर कठोर कर्मों का संहार करते, मात्मसाधना रत हो विहार करने लगे । रत्नत्रय माक्ति से उत्पन्न शीलरूपी
आयुष को लेकर, गुरग समूहों का कवच पहन, शुद्धतारूपी मार्ग से चल निशंक योगिराज प्रतिमुक्तक वन के प्रमशान में आ विराजे। उपसर्ग
धैर्य कम्बलावृत्त जिन मुनीन्द्र ध्यानारूढ हुए। प्रतिमायोग धारण कर प्रात्म संवित्ति का प्रानन्द लेने लगे। उसी समय द्वेष अभिप्राय से महादेव ने उन्हें देखा । उनके धैर्य की परीक्षा करना चाहा पायोपार्जन में दक्ष उसने प्रथम विद्या से घनघोर अंधकार किया, पून: भूत, बेताल, प्रादि भयकर रूप धारण कर नाचते-कूदने, गजने लगे । अद्रहास करने लगे । सर्प, हाथी, सिंह, भोल प्रादि की सेनाएँ पायीं । नाना प्रकार से भयभीत कर तपशच्युत करने का प्रयत्न किया। परन्तु श्री प्रभु तो मे चल अचल रहे । महादेव परास्त हुप्रा । माया समेटी । नाना प्रकार उनकी स्तुति की और "प्रतिवीर" नाम रस्त्र कर मानन्द से नृत्य किया । पारवती के साथ वन्दना कर अभिमान छोड़ चला गया ।
बन्दना डारा माहार
वृषभदत्त सेठ की सेठानी ने कुमारी चन्दना को शंकायश मुंड मुडा, वेडियों से जकड़ कारागार में डाल दिया था। उसे उडद के बांकले खाने को दिये । पुण्योदय से विपत्ति भी सम्पति बन जाती हैं, शुल फूल, शत्रु मित्र हो जाते हैं । धर्म जीव का चिर साथी और सफल रक्षक है।