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________________ Tags . जो १ योजन प्रयात् ५ कोश लम्बा चौड़ा गोलाकार था । मध्य में. १२ सभाओं से वेष्टित गंधकुटी में पाठ प्रातिहार्थों से समन्वित भगवान विराजमान हुए । सकलश प्रभु ने चार महिने का मौन समाप्त कर भव्य जीवों का कल्यास करने वाला मोक्ष मार्ग का सदुपदेशामृत वर्ष किया । ५ माह कम ७० वर्ष तक सम्पूर्ण भार्यखण्ड की पुण्य भूमि का धर्मामृत से अभिषिचन कर योग निरोध किया । इनके समवशरण में स्वयम्भू आदि १० गणधर थे । सामान्य केवलियों की संख्या १००० श्रुत केवल ३५०, उपाध्याय परमेष्ठी १०६००, मनः पर्यय ज्ञानी ७५०, विक्रिया ऋद्धि धारी १०००, प्रवधिज्ञानी. १४०० उत्तम वादी ६०० थे । सम्पूर्ण मुनिगण १६००० थे। श्री सुलोचना मुख्य गरिनी को लेकर ३८००० प्राधिकाएँ थीं। मुख्य श्रोता श्रजित को लेकर १ लाख श्रावक, ३ लाख श्राविकाएं थीं। मुख्य यक्ष घरणेन्द्र और यक्षी पद्मावती माता थीं । केवलज्ञान प्राप्ति का वृक्ष देवदारू था । पूर्वाष्ह काल में इन्हें सकलज्ञान पैदा हुआ था । समवशरण में परमोदारिक शरीर के माहाम्य से चारों ओर मुख दिखाई देता था । उस समय इनके प्रभाव से हरु वादियों को भयंकर भय हो गया था । इन्हीं के समवरण से अहंकारी teri मुनि निकल गया था। जिसने मुस्लिम धर्म चलाया । योगनिरोध www आयु का १ मास शेष रह गया । अब भगवान ने उपदेश बन्द कर दिया । वे सम्मेद शिखर की सुवरभद्र कूट पर प्रतिमायोग धारण कर अचल खड़े हो गये । ३६ मुनिराजों ने आपके साथ-साथ प्रतिमायोम वारण किया। कूट के दर्शन का फल १६ करोड़ उपवास है । निर्धारण कल्याणक - मोक्षगमन -- श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन प्रदोषकाल में (सायं-रात्रि के प्रथम प्रहर में ) विशाखा नक्षत्र में उसी सुवर्णभद्र कूट से ३६ मुनिराजों के साथ तृतीय एवं चतुर्थ शुक्ल ध्यान के द्वारा शेष सम्पूर्ण अघातिया कर्मों का नाश कर सिद्धावस्था प्राप्त की । श्रापके मोक्ष जाते ही इन्द्रादि देव देवियों ने लाकर निर्वाण कल्याणक महोत्सव मनाया। महा पूजा की । अग्निकुमारों ने अग्नि संस्कार आदि नियोग किया। अनेकों रत्नद्वीप जलाये | अनेकों फल-पुष्पों से अर्चना कर स्तुति की। वे श्री पार्श्वप्रभु हम लोगों को भी मुक्ति दाता हों । [ २४७
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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