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कमठ का जीव इसी वन में सिंह हुमा था वहाँ प्राया। मुनिराज को देखते ही झपटा और पैने नखों से उनका कण्ठ विदीर्ण कर डाला। साम्यभाव से उपसर्ग विजय कर मानन्द ऋषिराज समाधिकर अामत स्वर्ग के प्राणत विमान में जाकर इन्द्र उत्पन्न हुए । २० सागर की प्राय थी। शुक्ल लेण्या थी।१० माह बाद श्वास और २० हजार वर्ष बाद मानसिक आहार लेते थे।
स्वर्गावतरण--गर्भकल्याणक -
कारण के अनुसार कार्य होता है । पुण्य पुरुषों के निमित्त से द्रव्य क्षेत्र, काल, भाव भी पुण्यमय हो जाते हैं। इन्द्र की भायू ६ माह रह गई । इधर जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्रानन्तर काशी देश की वारणारसी में पुण्वांकुर उत्पन्न होने लगे । महाराज विश्वसेन का काश्यप गोत्र चमक उठा। उनकी पटरानी वामादेवी (ब्रह्मादेवी) का भाग्योदय हुमा । उनकी सेवा-सुश्रूषा, परिचर्यार्थ, श्री ली प्रादि ५६ कुमारियां देवी तथा अन्य अनेकों देवियाँ स्वर्गीय दिक्ष्य पदार्थों को ला लाकर उपस्थित होने लगी। रुचकगिरी वासी देववाला अत्यन्त सुरभित पदार्थों से महादेवी को गर्भ शोधना करने लगी। प्रांगन में देवगण प्रतिदिन १२ करोड अमूल्य रत्नों की वर्षा करने लगे है चारों ओर राम प्रसाद देव-देवीयों के संचार से भर गया । इस प्रकार ६ माह पूर्ण हए ।
वैशाख कृष्णा द्वितीया के दिन विशाखा नक्षत्र में रात्रि के पिछले प्रहर में रानी वामादेवी ने सुर-कुञ्जर प्रादि १६ स्वप्न देखे । स्वप्नान्तर अपने मुख में विशालकाय एक मत्त गज प्रविष्ठ होते देखा । मांगलिक वा और मान के साथ निद्रा भंग हुयी । सिद्ध प्रभु का नामोच्चारण कर शैया का त्याग किया । देवियों ने मंगल स्नान कराया वस्त्रालकारों से अलंकृत किया। प्रागनाथ से स्वप्नों का फल पूछा । उन्होंने हसते हुए कहा "आज तुम्हारे गर्भ में २३ चे तीर्थकर ने अवतार लिया है। नौ माह बाद तुम्हें उत्तम पुत्र रत्न प्राप्त होगा।" सुनते ही उस माँ का शरीर हर्ष से. रोमांचित हो गया । प्रानन्द से: फली नहीं समायी। उसी समय देवेन्द्रों ने प्राकर विशेष रूप से दम्पत्ति का वस्त्रालंकारों से सत्कार किया-पूजा की। गर्भकल्याणक महोत्सव मनाया । स्तुति कर स्वर्ग चले गये। . . . . . . .
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