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________________ २३ १००८ श्री पार्श्वनाथ जी पूर्वभव परिचय जम्बूद्वीप के कौशल देश में अयोध्या नगरी प्रति पुनीत पुरी है । प्रत्येक कर्मभूमि में २४ तीर्थंकरों को जन्म देने का इसे वरदान प्राप्त है । किसी समय दक्ष्वाकुवंशी राजा घञ्चबाहु इसका पालन कर रहा था । उसकी प्रियतमा का नाम प्रभाकरी था । यह वस्तुतः अनेक स्त्रियोचित गुणों की कान्ति थी । पुण्य योग से इनके आनन्द नाम का पुत्ररत्न उत्पन्न हुआ । आनन्द सचमुच आनन्द था | शरद के इन्दू समान सबको आनन्द देने वाला था। जन-जन के नयनों का तारा और कण्ठहार था । गुणाढ्य, वयाढ्य होने पर यह महामण्डलेश्वर राजा हुआ । यह प्रजावत्सल, उदार, जिनभक्त, धर्मप्रेमी और दयालु था । इसका पुरोहित भी इसी समान धर्मानुरागी था । उसका नाम स्वामिहित यथार्थ था । एक दिन स्वामिति के द्वारा श्रष्टाव्हिका व्रत का माहात्म्य सुनकर राजा ने फाल्गुन मास अष्टान्हिका में बड़ी भारी पूजा की । पत्नी सहित [ ૨૨
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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