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________________ lossomAINMotoreatenewpm-0000000000mmmmmmmmmmmMMAAMIR wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww w w TARVAD २ an PANANsputringal Ant २०-१००८ श्री मुनिसुव्रतनाथ जी पूर्वभव भारत भूमि को धर्म और धर्मात्माओं की जननी का सदा सौभाग्य प्राप्त हुआ है । मुनिसुव्रत तीर्थकर का जीव तीसरे पूर्वभव में अंगदेश की चम्पापुरी में हरिचर्मा नाम के राजा थे। कई प्रियाओं के साथ सुखानुभव करते थे । एक दिन श्री अनन्तवीर्य नामक मुनिराज पधारे । वन्दना कर हरिवर्मा ने सपरिवार जमकी अष्ट प्रकार द्रव्यों से पूजा की। वर्मोपदेश श्रवण किया। जीव तत्व को समझा । पालव को रोकने वाले समिति, गुप्ति, महावत आदि का स्वरूप समझा । कर्म बंध के कारणभूत मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषायों का त्याग हो पारमसिद्धि का उपाय है, समझ कर विरक्त हए । बड़े पुत्र को राज्य दे स्वयं दीक्षित हुए । कुछ ही समय में ११ अङ्गों के पारमामी हो गये। दर्शनविशुद्धि आदि सोलह कारण भावनाओं का चितवन कर तीर्थकर मोत्र कर्म बंध किया । प्रायु के अन्त में समाधि धारण कर चौदहवें प्रात स्वर्ग में [ २१६
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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