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________________ ダ प्राप्त किये। योगिराज निरंतराय प्राहार कर वन में जा मौन पूर्वक ध्यान लीन हो गये । अग्रस्थ काल मात्र ६ दिन छद्मस्थ काल था । केवलोerfe ६ दिन के बाद उसी श्वेत वन में अशोक वृक्ष के नीचे दो दिन के उपवासी उन प्रभु ने क्षपक श्रेणी श्रारोहण किया। प्रथम और द्वितीय शुक्ल ध्यान के बल से ३ करणों को करते हुए अगहन सुदी ११ श्रश्वनि नक्षत्र में मोहनीय के बाद तीनों अन्य घातिया कर्मों का नाश कर प्रक्षय, पूर्ण केवलज्ञान प्राप्त किया । केवलज्ञान कल्याणक श्रहंत अवस्था पाते ही इन्द्र सपरिवार प्राया । अनेक प्रकार से सर्वज्ञ प्रभु की पूजा कर केवलज्ञान कल्याणक महोत्सव मनाया । कुवेर ने उसी समय भव्य जीवों के कल्याणार्थ समवशरण मण्डप रचना की । समवशरण WALL भगवान मल्लिनाथ स्वामी ने ६ दिन कम ५४६०० वर्ष पर्यन्त अर्हन्त अवस्था में रहकर सम्पूर्ण श्राखण्ड को धर्मामृत पान कराया । बाल ब्रह्मचारी होने से इनका राज्य भोग काल नहीं रहा । समवशरण का विस्तार ३ योजन अर्थात् १२ कोस था। आठ भूमियों के मध्य मंत्र कुटी थी । इसकी तीन कटनियाँ उनके ऊपर भ्रष्ट प्रातिहार्य सहित कञ्चनमय रत्न जटिल सिंहासन था । इस प्रकार प्रभु अन्तरिक्ष पद्मासन से विराजे । उस समय उनकी आत्म विशुद्धि से चारों ओर मुख दिखलाई पड़ते थे । चतुर्दिक बैठे श्रोतागण समझते कि श्री प्रभु हमारी ओर देख रहे हैं। अनेकों भव्यात्माओं ने अनेक प्रकार व्रत, नियम, संयम आदि धारण किये । इनके समवशरण में विशाल यादि २८ गणधर थे, २२०० केवली ५५० पूर्वधारी श्रुतकेवली, २९००० पाठक-शिक्षक मुनि, २२०० पूज्य अवधिज्ञानी मुनि १४०० वादी, २६०० विक्रियाद्धिवारी १७५० मनः [ २१५
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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