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________________ श्रीयु भावनाओं को भाया और परम पुनीत तीर्थङ्कर प्रकृति का बंध किया । के अन्त में प्रायोपगमन संन्यास मरण कर "जयन्त" नामक अनुत्तर विमान में ३३ सागर की श्रायु वाला का शुभ्र शरीर था । ३३ पक्ष में श्वास लेता, सिक आहार था । प्रमिन्द्र हुआ । १ हाथ ३३ हजार वर्ष में मान स्वर्गावतरण- गर्भ कल्याणक जम्बूद्वीप का वैभव निराला है। भरत क्षेत्र में कुरुजाङ्गल देश में हस्तिनापुर अपने वैभव से इन्द्र को भी तिरस्कृत करता था । यहाँ 'सोमवंश' अपने उज्ज्वल यश के साथ विख्यात था, इसी वंश में काश्यप गोत्रीय महाराज सुदर्शन राज्य शासन करता था। इनकी प्रिया मित्रसेना समस्त स्त्रियोचित गुणों की खान थी। राजा को प्राणों से भी अधिक प्रिय थी। दोनों दम्पति दो शरीर एक प्रारण समान प्रीति से जीवन यापन करते थे । राजा भी अपने गुणों के साथ प्रजा के सुख साधन का ध्यान रखता था 'जयन्त' के अहमिन्द्र की आयु ६ माह की शेष रह गयी । इधर महाराजा सुदर्शन के प्रांगण में रत्नवृष्टि प्रारम्भ हुयी । पुण्योदय से समय पर वर्षा होने से किसानों का महानन्द होता है, मेघों की गर्जन के साथ मयूर थिरकियाँ लेने लगते हैं उसी प्रकार महादेवी मित्रसेना इस त्रिकाल अविरल रत्नवृष्टि से परिजन पुरर्जन सहित परम प्रमोद को प्राप्त हुई। महाराज भावी पुत्र की प्राशा से आनन्द विभोर हो गये । क्रमश: रत्न- वृष्टि होते-होते ६ महीने पूर्ण हो गये | फाल्गुण कृष्णा तृतीया के दिन रेवती नक्षत्र में पिछली रात्रि में सुख निन्द्रा लेसे समय शुभ सूचक १६ स्वप्न देखे, अन्त में विशालकाय गज मुख में प्रविष्ट होते देखा । प्रमुदित महादेवी मित्रसेना श्री सिद्ध-परमेष्ठी का sare करते हुए जागी। उनका तन-मन हर्ष से विशेष रोमाञ्चित श्रा । मुख को कान्ति प्रधिक उज्ज्वल थी । रुचकगिरो वासिनी देवियों ने उसकी सुगन्ति वस्तुनों से गर्भ शोधना कर दी थी जिससे दिव्य सुगन्ध से उनका शरीर व्याप्त था । बड़े भारी आनन्द से स्नानादि कर देवियों से पूजित वे अपने पतिदेव के निकट पधारों । रात्रि के स्वप्नों का फल क्या है ? जानने की जिज्ञासा प्रकट की । "हे सुमुखे ! तुम्हारे उत्तम गर्भ में 'अहमिन्द्र ने अवतार लिया है, तुम त्रिजगत गुरु की मां बनोगी" २०४ ] -------------------
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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