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१८-१००८ श्री अरनाथ जी
पूर्वभव
कहावत है "यथा राजा तथा प्रजा" कच्छ देश के क्षेमपुर नगर में राजा धनपति अत्यन्त प्रजावत्सल था । पृथ्वी भी कामधेनू के समान राजा के सर्व मनोरथ पूर्ण करती थी। बिना मांगे भी दान देता था। राजा और प्रजा. उसकी प्राज्ञा की प्रतीक्षा करती थी। धर्म, अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थ प्रतिस्पर्धा पूर्वक बनते थे। उसके राज्य में राजाप्रजा सभी अपनी-अपनी ग्राजिविका प्रानन्द से धर्मपूर्वक अजित करते थे।
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अानन्द से समय जा रहा था। एक दिन राजा ने अहंनन्द तीर्थहर के दर्शन किये । धर्मोपदेश सुना और संसार भोगों से विरक्त हो गया । ग्लानि होने पर सुस्वादुनिष्ठ भोजन का भी मन हो जाता है । धनपति ने भी राज्य का वमन कर दिया। पूर्ण भाव शुद्धि से जिन दीक्षा धारण की । ग्यारह अंङ्गों का अध्ययन किया । सोलह कारण
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