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पर गये। बालक बढने लगा | बढ़ने ही क्या लगा राजा प्रजा श्रादि सबका हर्ष बढाने लगा | म को कितना श्रानन्द होगा ? कौन बताये ? कुमार काल
श्री शान्तिनाथ स्वामी के बाद प्राधा पल्य बीत जाने पर पुण्यघाम श्री कुन्थुनाथ जी का जन्म हुआ । इनकी आयु इसी में सम्मिलित है । इनका आयु काल २५००० ( पिचानवे हजार) वर्ष था, पैंतीस धनुष ऊँचा शरीर था, शरीर कान्ति सुवर्ण वर्ग की थी । २३७५० वर्ष कुमार काल में समाप्त हो गये ।
राज्य प्राप्ति और चक्रवतित्व-
तेइस हजार सातसौ पचास वर्ष कुमार काल जाने पर पिता सूरसेन महाराजा ने इन्द्र के साथ मिलकर इनका राज्याभिषेक किया । कुछ दिन राज्य करने पर शान्तिनाथ स्वामी के समान ही इनकी मायुधशाला में 'चकरत्न' उत्पन्न हुआ । १४ रत्नों और नव निधियों का आधिपत्व प्राप्त कर समस्त भरत खण्ड के अधिराजा हुए । अर्थात् छहों खण्डों को जीत कर चक्रवर्ती कहलाए । तीर्थङ्कर पद तो है ही, चक्रवर्ती श्रौर कामदेव पद भी प्राप्त था। तीनों पदों से उसी भाँति शोभित थे जैसे रतन्त्रय तेज से मुनि पुंगव शोभित होते हैं । पूर्ण शान्ति और न्यायप्रियता के कारण ९६ हजार रानियों के साथ भोगोपभोग करते हुए इनका २३७५० वर्ष काल पलक झपक की भाँति बीत गया । इनके राज्य में धर्म, अर्थ, काम पुरुषार्थों का समान रूप से सब प्रजा भोग करती थी अन्त में मोक्ष पुरुषार्थ साधना का लक्ष्य बना कर भोग भोगते थे । निरंतर १० तरह के भोगों में इनका समय जा रहा था ।
वैराग्य
किसी एक दिन वे अपनी ६ प्रकार की सेना के साथ वन विहार को गये। वहां अनेक प्रकार क्रीड़ा की । वापिस आते समय एक मुनिराज को प्रतापनयोग धारण किये विराजमान देखा । तर्जनी ऊँगली के संकेत से मन्त्री को दिखाया। क्योंकि तीर्थङ्कर सिद्धों के सिवाय ग्रन्य किसी को नमस्कार नहीं करते । मन्त्री ने भक्ति से मस्तक झुका कर उन्हें नमस्कार किया । एवं राजा से इस कठोर साधना का
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