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________________ mhotodolan धनरथ को उल्कापात से वैराग्य हो गया । मेघरथ राजा हुमा । न्याय . से छोटे भाई के साथ प्रजा का रक्षण किया । एक दिन धन रथ जिनेन्द्र मनोहर उद्यान में पधारे । मेघरथ महाराजा सूचना पा परिजन-पुरजन सहित महा वेभव के साथ जिन वन्दन को गये । उपासकाध्ययन का उपदेश सुना, चतुर्मति के दु:खों को सुनकर उनका हृदय कांप गया । वह संयम धारण करने का निश्चय कर घर आया। अपने छोटे भाई दन्डरथ को बुलाकर राज्य देना चाहा । परन्तु उसने यह कहकर कि "जिस वस्तु को पाप त्याग रहे हैं वह मुझे किस प्रकार सुखकर हो सकती है ?" अस्वीकार कर दिया। फलतः उसने अपने पुत्र मेघसेन को राज्यापरण कर भाई के साथ दोश्ना धारग की। घोर तप किया। षोडशकारण भावना भाकर तीर्थङ्कर गोत्र बध किया। दोनों ही भाइयों ने उत्तम समाधि-मरण कर सर्वार्थसिद्धि में अहमिन्द्र पद पाया । वहाँ एक हाथ का शुभ्र शरोर था । ३३ पक्ष बाद श्वास लेते थे । ३३ हजार वर्ष अनन्तर मानसिक आहार लेते । शुक्ल लेश्या थी । निरन्सर तस्व चिन्तन करते थे । इनमें से मेघरथ का जीव दुसरे भव में शान्तिनाथ तीर्थकर और दृढरथ उनका गणधर होकर मुक्ति प्राप्त करेंगे) इस समय अलौकिक सुख का अनुभव करने लगे। गर्भावतरण हस्तिनागपुर प्राचीन काल से अपने वैभव, गौरव और महात्म्य से प्रसिद्ध रहा है। यह कुरुजांगल देश में है । उस समय इसका राजा विश्वसेन था । यह अत्यन्त शूरवीर और रणधीर था। इसकी पटरानी का नाम "ऐरा" था । संसार में यह अद्वितीय सुन्दरी थी। दोनों राज दम्पत्ति सुख से राजभोग करने लगे । 'ऐरा' महादेवी सुख निद्रा तज, उठी। उन्हें महान आश्चर्य हुश्रा, आंगन में अनेकों रत्नों की राशि देखकर । ये कहाँ से आये ? "देवीजी आपके सौभाग्य से आकाश से वर्षे हैं।" परिचारिकाओं में बड़े विनम्र भाव से कहा । उदारमना उस राजरानी ने आजा प्रदान की कि "याचकों को इच्छानुसार वितरण करो" यह क्रम ६ माह तक चलता रहा । तीनों संध्याओं में करोड़ों रत्नों को वर्षा हो और उन्हें दान में दिया जाये तो भला कौन दरिद्री रहेगा? याचक ही नहीं रहे । देवियाँ प्रा
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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