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________________ योग निरोध--- १ महिना आयु शेष रहने पर fter | श्री सम्मेद शिखर पर्वत की प्रतिमायोग धारण कर आ विराजे संकोच कर लिया । मोक्ष कल्याणक - एकाग्रचित्त (उपचार मन ) से प्रभु प्रात्म स्वरूप में लीन हो गये । परम शुद्धात्मा का ध्यान ही अब धर्मनाथ प्रभु का इष्ट कार्य था । एक मास काल समाप्त हुम्रा । ज्येष्ठ शुक्ला चतुर्थी के दिन पुष्य नक्षत्र में रात्रि के अन्तिम पहर ( उषाकाल) में ८०६ मुनिराजों के साथ अन्तिम शुक्ल ध्यान द्वारा सम्पूर्ण अत्रातिया कर्मों का जड़मूल से उच्छेद कर मोक्ष अवस्था प्राप्त की। उसी समय इन्द्रासन कम्पित हुआ । भगवान ने सिद्धलोक प्रयास किया जानकर समस्त परिजन पुरजन सहित श्राकर असंख्यातों देव देवियों सहित परिनिर्वाण कल्याणक पूजा कर महा महोत्सव fear | रत्न दीपमाला जलायी । नाना प्रकार स्तुति स्तोत्रादि पड़े । तदनन्तर श्रावक-श्राविकाओं ने भी महोत्सव किया । विशेष.... आपने देशना - धर्मोपदेश बन्द कर बसवर कूट पर कायोत्सर्गासन से । कुबेर ने समवशरण रचना का भगवान धर्मनाथ प्रभु के मोक्ष पधारने के बाद ३२ अनुबद्ध केवली हुए । श्रीमान् सुदर्शन बलभद्र, बलवान पुरुषसिंह नारायण और मधुक्रीड प्रतिनारायण हुए । नियमानुसार मधुक्रीड द्वारा चलाये चरन को प्राप्त कर उसी चक्र से पुरुषसिंह ने उसे मारकर तीन खण्ड का राज्य लिया | नारायण राज्य भोगों में ग्रासक्त हो मरण कर नरक में गया । प्रतिनारायण की भी यही दशा हुयी थी । वलभद्र सुदर्शन विरक्त हो दीक्षा धारण कर कर्मनाश मुक्त हुए । इन्हीं के समय मघवान नामक चक्रवर्ती हुआ । ६ खंड का शासन कर, त्याग कर दीक्षा ले तपश्चरण किया । कर्म काट कर मोक्ष पधारे। 1 १८५
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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