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________________ 2 men १५-१००८ श्री धर्मनाथ जी पूर्वमय विशेष विलक्षण पुरुषों का चरित्र भी विलक्षण हुआ करता है । पूर्वघातकी खण्ड की बात है। पूर्व दिशा में सीता नदी के दक्षिण तट पर सुसीमा नगर अपनी शोभा से कुबेर की अलकापुरी को तिरस्कृत करता था । इसका राजा था दशरथ । यह बल, बुद्धि, विद्या, पराक्रम का बनी राज्य को पूर्ण सुरक्षित बनाये हुए था। भोगों की कमी न थी । यशोपाका सर्वत्र फहराती थी । प्रतापी भा हो । पचेन्द्रिय विषय अन्य सुखों में डूबा था । पुण्य की महिमा ही निराली होती है । भवितव्यता का अपना प्रभुत्व है, अपना कार्य है। एक बार बसन्तागमन पर प्रजा जनों ने उत्सव मनाया। राजा क्यों वंचित रहता ? उद्यान की छटा और चन्द्रमा का प्रकाश एक-दूसरे से बाजी लगाये थे। राजा कभी भू-खण्ड और कभी गगन प्रदेश को निहारता [ १७६
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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