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सभी इन्द्र इन्द्रारिणयाँ, देव देवियों ने महा मस्तकाभिषेक कर जन्मोत्सव मनाया । पुनः बालक को माता-पिता को देकर ताण्डव नृत्य प्रदर्शन कर इन्द्र राजा अपने परिवार को लेकर स्वर्ग लोक को चला गया। महाराजा सुद्ध ने भी विशेष रुप से दान, पूजादि कर पुत्र जन्मोत्सव मनाया। कुमार काल ...
इन्द्र ने जन्मोत्सव समय इनका "शीतलनाथ" नाम प्रथित कर कल्प वृक्ष का चिह्न निर्धारित किया। इनके देखने मात्र से लोगों का हृदय शीतल-शान्त हो जाता था । श्री पुष्पदन्त के मोक्ष जाने के बाद ६ करोड सागर वर्ष बीत जाने पर इनका जन्म हुआ। इनके जन्म लेने के पूर्व पल्य के चौधाई भाग तक धर्म का विच्छेद रहा । इनका पुर्ण प्रायु प्रमाण एक लाख पूर्व की थी। शरीर की ऊँचाई ६० धनुष थी । शरीर की कान्ति सुवर्ण समान थी। इनका कुमार काल पूर्व मात्र रहा । कुमार अवस्था में समस्त भोगोपभोग पदार्थों तथा मनोरंजन के साधन देवेन्द्र द्वारा समन्वित किये जाते थे ।
राज्यकाल....
कुमार शीतल कौमार अवस्था पार कर यौवन को देहली पर प्राये । पिता ने सर्वगुण सम्पन्न और राज्य योग्य देखकर प्रथम अनेकों सुन्दर, शील गुण सम्पन्न कन्याओं के साथ उनका विवाह कर दिया। शीतलनाथ मनोरंजक अप्सरामों को भी तिरस्कृत करने वाली उन ललनात्रों के साथ नाना प्रकार क्रीडाएँ करने लगे। पिता द्वारा प्रदत्त राज्य पाकर प्रभु ने प्रजा का पुत्र वत् पालन, और सम्यक प्रकार वर्द्धन किया । गत्यादि शुभ नाम कर्म, सातावेदनीय उदय, ऊँचगोत्र, अपचतं प्रकाम मरण रहित प्रायु, तीर्थङ्कर गोत्र कर्म ये सब कर्म मिलकर उस्कृष्ट भोगानुभव करते थे। उनका सुख उपमातीत था । राज्य भोगों में प्राचा पूर्व समय समाप्त हो गया । वैराग्य
गीत काल अपना वैभव विखेरे था। रात्रि पाले से व्याप्त हो जाती । प्रात: तरु पत्तों पर प्रोस बिन्दु मोती से इलकते नजर पाते । सूर्योदय की लाली अभी छायी ही हुयी थी कि राजा शीतलनाथ वन