________________
५९wala
सखियों के साथ जिनगण का कथन करते हुए निद्रा की गोद में खो गई । रात्रि के पिछले प्रहर में उसने १६ स्वप्न देखे और अन्त में अपने मुख में वृषभ को प्रवेश करते देखा । प्रातः पतिदेव से निवेदन कर सनका फल 'तीनलोक का स्वामी पुत्र होगा' सुनकर दोनों दम्पत्ति परमानन्दित हुए। फाल्गुन कृष्सा नवमी के दिन मूल नक्षत्र में वह इन्द्रराज व्युत्त हो मा विराजा इस महादेवी के गर्भ में । इसके पूर्व ही इन्द्र को प्राज्ञा से रुचकगिरि निवासिनी देवियों ने माता की गर्भ शोधना कर दी थी। यद्यपि वह रजस्वला नहीं होती थी और न उसके मल-मूत्र विकार ही थे तो भी देवियों ने अनेकों दिव्य-सुगंधित पदार्थों से गर्भाशय को सुगधित कर दिया था। भाबी भगवान सुख से पा विराजे । जन्मोत्सव-मस्याएक
देवांगनानों द्वारा सेवित माता का गर्भकाल पुर्ण हो गया । उन्हें किसी प्रकार का कष्ट था भार नहीं हया था । अाज चारों ओर हर्ष छाया था। घर-आंगन देव देवियों, इन्द्र इन्द्राणियों से खचित था । कोई प्राता और कोई जाता। चहल-पहल थी।
मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा के दिन प्रयोग में इस महादेवी ने उत्तमोत्तम पुत्र रत्न उत्पन्न किया । प्रसूतिगृह में जाकर स्वयं इन्द्राणी बाल प्रभु को लायी और इन्द्र की गोद में दिया । सफल मनोरथ इन्द्र इन्द्राणी सपरिवार सुमेरू की पाण्डक शिला पर पहुँचे और उन सद्योजात बालक का १००८ कलशों से अभिषेक किया। इन कलशों में क्षीर सागर (५वें समुद्र) से देव लोग हाथों हाथ जल लाये थे। दूग्ध गंगा बह चली। इन्द्राणी ने प्रारती उतारी, शरीर पोंछकर वस्त्रालंकार पहनाये । इन्द्र ने हजार नेत्र बनाकर रूप सनिय पान किया और पुष्पवत नाम विष्यात कर मगर का चित्र निर्धारित किया। सोत्साह काकन्दी प्राये प्रानन्द नाटक कर अपने-अपने धाम चले गये। राजा और पुरजन लोगों ने भी यथा शक्ति अन्मोत्सव मनाया।
देव कुमारों के साथ वृद्धि को प्राप्त सुविधिकुमार (दूसरा नाम ) शनैः शनैः शैशव से बाल और बालावस्था से कुमार काल में प्राये ये चन्द्रप्रभु के मोक्ष जाने के बाद ६० करोड सागर बीत जाने पर हुए । इनकी आयु दो लास पूर्व की थी। १०० धनुष का शरीर था।
[ १३७