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________________ ६-१००८ श्री पुष्पदन्त जी शान्तं वपुः श्रवरणहारी वचश्चरित्र सर्वोपकारी तवदेव ! ततो भवन्तम् । संसार मारव महास्थलरुद्रसान्द्र च्छाया महीरुह मिमेसुविधि श्रयामः ॥ ( प्रा० गुरणभद्र ) पूर्व मव- "मनोहर उद्यान में भूतहित नाम के तीर्थङ्कर पधारे हैं" सुनते ही महाराजा महापद्म पुलकित हो उठा। सिहासन से सात कदम चलकर उस दिशा में नमस्कार किया। आनन्द भेरी बजी । श्राज्ञाकारिणो, सर्वगुण सम्पन्न प्रजा -'यथा राजा तथा प्रजा की उक्ति को चरितार्थ करती हुयी - नानाविध रत्नपात्रादि सामग्री लेकर जिन वन्दना को तैयार हो गई । मानो 'पुण्डरीकनी' नगरी अपने नाम को सार्थक करना चाहती है क्योंकि सभी पुण्डरीक सफेद कमल लिये थे जिन पूजन महापद्म के राज्य में कभी दण्ड विधान नहीं हुआ था, क्योंकि वह अपने समान ही प्रजा को शिक्षित और न्यायप्रिय बनाये हुए था। किसी को को [ १३५ TITTY
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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