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हो गई। इस चमत्कार का प्रत्यक्ष फल देने की सूचना रूप, ये मंगलकारी. स्वप्न मानों माता को बधाई देने प्राये हैं | प्रथम ही गर्जना करता सफेद हाथी, २. सफेद बेल, ३ सिंह, ४. लक्ष्मी का सुवर्ण कलशों से गज अभिषेक करते हुए, ५. लटकती दो मन्दार मालाएँ, ६. पूर्ण चन्द्रमा, ७. उदय होता हुआ सूर्य, ८. सरोवर में क्रीडा करती हुई दो मीन, ६. सुवर्णमय मंगल कलश युगल, १०. पद्म-सरोवर, ११. उन्मत्त लहर युक्त समुद्र, १२. रत्नजटित सिंहासन, १३. देव विमान, १४ घरणेन्द्र भवन, १५. प्रकाशित रत्नराशि और १६. निर्धूम अग्नि । स्वप्नों की पूर्ति के साथ ही अपने मुख में प्रविष्ट होता वृषभ देखा । बंदीजनों के मंगलगान, चारणों की वाद्य ध्वनि एवं पक्षियों के मधुर कलरव के साथ मां श्री की निद्रा भंग हुई। इस समय उन्हें लन्द्रा तनिक भी नहीं थी वे स्वभाव से ही अप्रतिम सुन्दरी थीं, सौन्दर्य का सार पुंज थी फिर स्वप्नों के देखने से आनन्द और विश्मय से उनकी कान्ति द्विगुरित हो रही थी । समस्त सृष्टि उन्हें आनन्द विभोर प्रतीत हो रही थी । अत्यन्त प्रसन्नचित्त महादेवी मङ्गल स्नानादि क्रिया कर अपने पतिदेव के पास ग्रायी मानों हृदय में नहीं समाते ग्रामन्द को बांटना चाहती हो ।
स्वप्न फल
महाराज नाभि छत्र चमरादि राजचिह्नों से मण्डित हो राज सिंहासन पर यासीन थे । सभा भरी थी | मन्द मन्द गमन करती हुयी प्रसन्न वदना महारानी भी प्रविष्ट हो अर्द्धसिंहासन पर या विराजी । विनयोपचार पूर्वक शिष्टता से मृदुवारणी में निवेदन करने लगी- "हे देव आज प्रातः मैंने सोलह शुभ स्वप्न देखे हैं, कृपया इनका फल वर्णन कर मेरी उत्कण्ठा का समाधान करें। स्वप्नों के नामानुसार महाराज नाभिराय अपने अवधि लोचन से बोले, हे देवी! गज देखने से तुम्हें उत्तम पुत्र लाभ होगा, वृषभ से सर्व श्रेष्ठ और ज्येष्ठ होगा, इसी प्रकार श्रम से स्वप्नों के अनुसार अनन्त बलधारी, धर्म तीर्थ प्रवर्तक, इन्द्रों द्वारा अभिषिक्त, संसार को सुखदाता, तेजस्वी, प्रति सुखी, शुभ लक्षणों से युक्त, जगद्गुरु, स्वर्ग से आनेवाला श्रवधिज्ञानी, समस्त कर्मों का नाश कर मुक्ति पाने वाला अनुपम पुत्र रत्न होगा । सुनते ही रानी रोमाञ्चित हो उठी, मानों पुत्ररत्न गोद ही में आ गया ।
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जिस समय अवसर्पिणी के तीसरे काल में चौरासी लाख पूर्व, तीन वर्ष साडे आठ महीने बाको रहे थे उस समय आषाढ़ शुक्ला द्वितीया,
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