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________________ •Jio. --------- ८-१००८ श्री चन्द्रप्रभु जी पूर्वभव ऊपर स्वर्ग और नीचे नरक लोक के मध्य में असंख्यात द्वीप समुद्रों से वेष्टित है "मध्यलोक" । इसका मापदण्ड है सुमेरु पर्वत | इसी को घेरे तीसरे नम्बर का पुष्करवर द्वीप है । ठीक इसके मध्य में मानुषोत्तर पर्वत है। इसके पूर्व और पश्चिम दिशा में मन्दर और विद्युन्माली नाम के दो मेरु हैं । पूर्व दिशा के मन्दर मेरु से पश्चिम की घोर महा विदेह क्षेत्र है । उसकी सीता नदी के उत्तर तट पर एक सुगन्धि नामक देश है । यह सर्व प्रकार सम्पन्न है। इसमें श्रीपुर नाम का नगर है । यह रचना अनादि है परन्तु राज्य शासन और शासक - राजा बदलते रहते हैं । पूर्वकाल में यहाँ श्रीषेण नामका राजा राज्य करता था। यह राजा बलवान, धर्मात्मा, दयालु और न्यायप्रिय था । विचारश और विवेकवान था । अहंकार से दूर विनय सम्पन्न था। चूक होने पर पश्चात्ताप कर सुधारने की चेष्टा करता था। उसकी महारानी का नाम श्रीकान्ता था, [ १२५
SR No.090380
Book TitlePrathamanuyoga Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayamati Mata, Mahendrakumar Shastri
PublisherDigambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages271
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, H000, & H005
File Size5 MB
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